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पत्र: काला कालेलकरको

  जैतूनके तेलका उपयोग यदि मछलीके तेलके स्थानपर करना चाहते हो तो भले ही करो। कुछ लोग तो इसे मछलीके तेलसे भी अधिक अच्छा समझते हैं। भाई भंसालीने जेलमें इसीका उपयोग किया था।

तुम्हारी "वधू लक्षण परीक्षा" के साथ मेरी पर्ची डालनेकी आदतका तनिक भी सम्बन्ध नहीं है। पर्ची बेचारी इतना बोझ नहीं उठा सकती। उसमें देवताको ललचाने लायक कोई बात नहीं है लेकिन इसमें एक प्रकारकी तटस्थता है। जहाँ बुद्धिका उपयोग करनेका कोई कारण न हो, जहाँ दोनों वस्तुओंके होने या न होनेके प्रति उदासीनता हो और दो विकल्पोंमें से एकको किये बिना काम न चले, जहाँ कोई भला मित्र पंच बननेके लिए तैयार न हो वहाँ पर्ची-मित्रका उपयोग मुझे बहुत अच्छा लगता है। उससे समय बचता है और मनपर पड़नेवाले बोझसे भी व्यक्ति बच जाता है। जहाँ सिद्धान्तकी बात हो वहाँ पर्ची डालना अनैतिक माना जायेगा।

चोरी की जाये अथवा नहीं, इसके लिए पर्चियाँ डालनेके उपायका आश्रय नहीं लिया जा सकता। लेकिन 'क' के साथ घूमनेके लिए जायें अथवा नहीं, इस सम्बन्धमें वाद-विवाद करने और "हाँ, न" के समर्थनमें वेद मन्त्रोंके उद्धरण देनेसे पर्ची डालना क्या अच्छा नहीं कहा जायेगा? ऐसे कार्योमें अन्तःकरणसे पूछने बैठें तो अन्तर्नादिकी कोई कीमत न रहे और रसिक जैसा बालक भी अन्तर्नादको बीचमें लाकर पाँव फैलाकर बैठ जाय [और कह दे कि मैं नहीं करूँगा।] असहयोग आन्दोलनमें अन्तनदिके ऐसे दुरुपयोग क्या हमने नहीं देखे? जहाँ चोलाई और मेथी दोनों ही भाजियाँ पथ्य हों, जहाँ दोनों ही आसानीसे मिल सकती हों और जहाँ उनमें से केवल एकको ही लेना हो तथा इस बारेमें तुरन्त निर्णय न कर सकते हों, वहाँ उसे अन्तर्नादिका प्रश्न बनाना ठीक है अथवा तटस्थ होकर पर्चीसे पूछ लेना ठीक है?

जब भाई हरिहर आयेंगे तब उनके बारेमेंमें देख लूँगा। भाई नरहरिने तो यह सोचा था कि हरिहरको सूरतमें एक बाल-मन्दिर खोलनेका काम सौंपा जाये। यदि सूरतके लोग ऐसा करने को तैयार हों और इसके लिए पर्याप्त पैसा दें तो वे बाल-मन्दिर अवश्य शुरू करें, लेकिन विद्यापीठकी ओरसे हम यह प्रयोग नहीं कर सकते। भाई...[१]को श्रृंगार रसका रंग लग गया है यह बात मुझे ऐसी याद आती है कि भाई...ने[२] मुझे जेलमें ही कही थी।...[३]नामके हस्ताक्षरवाला एक अश्लील काव्य उन्होंने मुझे दिखाया था और जब मैंने पूछा कि यह...[४]कौन है तो उन्होंने बताया था कि यह आश्रमके ही...[५] हैं, ऐसा मुझे याद आता है। लेकिन सम्भवतः मैं भूल रहा होऊँ। ...[६] ने नहीं शायद किसी दूसरेने कहा हो, इसपर तो भाई ...[७]के आनेपर ही विचार किया जायेगा।

यूरोपकी यात्राके बारेमें अभी तो कुछ तय नहीं हुआ है। यह सच है कि स्वामीने भी मुझसे अपना विरोध प्रकट किया था। अमेरिका जानेमें केवल हजारों व्यक्तियोंके सम्मुख भाषण देनेकी ही बात थी। फिनलैंड जानेमें सारी दुनियासे आये हुए विद्यार्थी प्रतिनिधियोंके सम्मेलनमें जानेकी बात है। इन दो प्रस्तावोंमें बड़ा भेद

  1. नाम छोड़ दिये गये हैं।
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