४९९. पत्र: मीठुबहन पेटिटको
साबरमती आश्रम
शनिवार, ८ मई, १९२६
तुम्हारा पत्र मिला; शहद भी मिला। मैं देखता हूँ कि आखिर मुझे महाबलेश्वर आना ही पड़ेगा। आज सर चुनीलाल मेहताका पत्र आया है। यह गवर्नरने ही लिखवाया दिखता है और इस पत्रमें उन्होंने मुझसे उनके पास ही ठहरनेके लिए कहा है। मुझे लगता है कि मुझे यह निमन्त्रण स्वीकार कर लेना चाहिए। बहुत करके आगामी बृहस्पतिवारको ही यहाँसे रवाना होऊँगा। मुझे रहना तो तुम्हारे साथ अथवा नरगिस बहनके साथ ही अच्छा लगता है। लेकिन हमें तो हर समय हमारा धर्म क्या है, यही खयाल रखना है।
फाउन्टेन हाउस
महाबलेश्वर
गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५३७) की फोटो-नकलसे।
५००. पत्र: जमनालाल बजाजको
साबरमती आश्रम
शनिवार [८ मई, १९२६]
आखिर महाबलेश्वर तो जाना ही पड़ेगा। आज सर चुनीलाल मेहताका पत्र आया है। वह गवर्नरने ही लिखाया है, और उसमें सूचित किया गया है कि हो सके तो गवर्नरसे महाबलेश्वरमें ही मिल लिया जाये। उनके साथ ही रहनेका भी आमन्त्रण दिया है और आग्रह किया है। इसलिए यहींसे गुरुवारको रवाना होनेका इरादा रखता हूँ। इतनेमें देवदासका ऑपरेशन हो ही चुका होगा। आज तारकी राह देख रहा हूँ। महाबलेश्वर जानेमें बंगलेकी तजवीज नहीं करनी होगी। मोटरका क्या प्रबन्ध करना उचित होगा और तुमको साथ आना है या नहीं, इसका विचार कर लेना।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २८६२) की फोटो-नकलसे।