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४९७. पत्र: कुसुम और धीरुको

साबरमती आश्रम
शनिवार, ८ मई, १९२६

चि॰ कुसुम और वीरु,

तुम्हारा पत्र मिला। अब जो हो गया है मैं उसमें किसका क्या दोष है, इसका निर्णय नहीं करना चाहता। अब तो इतना ही चाहता हूँ कि वहाँ रहकर जो समय मिले उसका पूरा-पूरा लाभ उठाओ और यह लाभ इस तरह उठाओ: उठने बैठने कातने आदिके बारेमें यहाँसे भी ज्यादा नियमका पालन करके वहाँके वातावरणपर अपनी छाप डालो और अपने निश्चयमें और भी दृढ़ बनो। मुझे पत्र लिखते रहना। मैं देखता हूँ कि अभी भी अक्षर सुधारनेकी बहुत जरूरत है। धीरुके तो बहुत कच्चे हैं। धीरु यदि अपनी सभी प्रतिज्ञाओंका वहाँ अच्छी तरहसे पालन करेगा तो उसके बम्बई जानेसे मुझे जो दुःख हुआ है, उसे भूल जाऊँगा। भानुमतीसे कहना कि यदि वह नियमपूर्वक चरखा कातने लगेगी और सवेरे चार बजे उठनेकी आदत डाल लेगी तो मैं मान लूँगा कि तुम दोनोंको वहाँ भेजनेसे बहुत लाभ हुआ है। देवदास वहाँ है। उसका ऑपरेशन होनेवाला है। उसके साथ बा तथा महादेवभाई गये हैं। यह सब तो तुम्हें मालूम ही होगा।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५३५) की माइक्रोफिल्मसे।

४९८. पत्र: जयाको

साबरमती आश्रम
शनिवार, ८ मई, १९२६

चि॰ जया,

कुसुम और धीरुके वहाँ जानेसे एक लाभ तो हुआ ही है और वह यह कि तुम्हारा पत्र मुझे मिला। तुम्हारी लिखावट इतनी अविकसित है, यह मैं नहीं जानता था। इसमें सुधार तो अवश्य हो सकता है। यदि बच्चोंसे तुम बराबर नियमका पालन करवाओगी तो उनके जानेके दुःखको मैं भूल जाऊँगा। डाक्टर प्रभुदासकी तबीयत कैसी रहती है यह बताना। शेष कुसुम और धीरुको लिखे पत्रसे जानोगी।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५३६) की माइक्रोफिल्मसे।