पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/४८४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आटा न मिल सके वहाँ निःसंकोच मिलसे पिसे हुए आटेका उपयोग करना चाहिए। जहाँ रास्तेकी सतह बहुत गरम हो अथवा उसपर काँटे हों वहाँ जूतेका, जिसका नाम ही 'काँटारखा' अथवा 'पगरखा' है, उपयोग अवश्य करो। जब इस तरहके धर्म-संकट आ पड़ें तब मुझे लिखनेमें तनिक संकोच न करना। अपनी तबीयतका खूब ध्यान रखना।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५३२) की फोटो-नकलसे।

४९२. पत्र: छोटालालको

साबरमती आश्रम
बृहस्पतिवार, ६ मई, १९२६

चि॰ छोटालाल,

तुम्हारा जयपुरसे लिखा पत्र मिला। उससे पहलेका भी एक पत्र मिला था। तुम्हारे कलकता पहुँचनेके बाद मैंने तुम्हें पत्र लिखनेकी बात सोची थी। लेकिन तुम्हारा जयपुरसे लिखा पत्र ऐसा है कि मुझे आज ही उत्तर लिखवाना पड़ रहा है। मुझे तो तुम्हारा हिसाब जरा भी पसन्द नहीं है। सावधानी आवश्यक है, लेकिन बालकी खाल नहीं निकालनी चाहिए। तुम मानसिक अथवा शारीरिक व्याधि दूर करनेके लिए कहीं जाओ तब जो भी खर्च हो वह आश्रमसे ही लो। तुम अपना पैसा किस लिए जमा रखते हो? तुम अपना सर्वस्व अर्पित कर दो यह अच्छा है या यह कि 'मैं' और 'मेरा' का भाव कुछ-न-कुछ बना ही रहे? और जैसे तुम्हारे जानेका खर्च आश्रमसे दिया जायेगा वैसे ही तुम्हारे शॉर्टहैण्ड सीखनेका खर्च भी। सतीशबाबू तो जो काम तुम करोगे उसका पैसा देंगे ही। लेकिन ऐसा हिसाब करनेसे बेहतर तो यह होगा कि तुमसे जो मदद हो सके वह तुम कोई पैसा लिये बिना करो और शॉर्टहैण्ड भी मुफ्त सीखो। ऐसे सूक्ष्म जान पड़नेवाले प्रश्नोंको उठानेकी अपेक्षा ज्यादा जरूरत इस बातकी है कि तुम अपने कर्त्तव्यको अत्यन्त सूक्ष्म रूपसे पहचान लो और निश्चयात्मक बन जाओ। जो व्यक्ति तुम्हारी तरह व्यर्थकी बारीकियोंमें उतरता है वह उनमें उलझकर रह जाता है तथा अपने सामने पड़े बड़े तथा पर्वतके समान धर्मको नहीं देख सकता। मुझे पत्र नियमित रूपसे लिखते रहना। तुम प्रयागके लिए रवाना हुए और भुवरजी यहाँ आये।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५३३) की माइक्रोफिल्मसे।