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सुदूर अमेरिका से

दे और उस रक्षक द्वारा किये गये शारीरिक प्रतिरोधसे उत्पन्न अपना क्रोध उस बेचारी लुटती हुई नारीपर उतारे। इस प्रकार उस रक्षक द्वारा उसको बचानेके लिए किये गये शारीरिक प्रतिरोधके कारण उस नारीकी स्थिति और भी बुरी हो जाती है। यह सच है कि उस हालतमें रक्षकको इस बातका सन्तोष रहेगा कि अपना कर्त्तव्य पूरा करनेके लिए उसने कुछ भी उठा नहीं रखा। लेकिन, यह सन्तोष तो अहिंसक प्रतिरोधीको भी प्राप्त होगा। कारण, वह भी उस अबलाकी रक्षा करनेके लिए अपनी जान दे देगा। लेकिन उसे एक और भी बातका सन्तोष प्राप्त होगा। वह यह कि उसने अनुनय-विनय करके उस लुटेरेके हृदयमें दया भरनेकी कोशिश की। पत्र-लेखकके सामने जो समस्या उपस्थित हुई है वह ऐसा मान लेनेके कारण कि अहिंसक रक्षक तो उस लूटका मात्र असहाय दर्शक बनकर रह जायेगा। लेकिन, असलियत यह है कि मेरी योजनाके अन्तर्गत प्रेमको शरीर-बलकी अपेक्षा अधिक सक्रिय और प्रभावसम्पन्न शक्ति माना गया है। जिसके हृदयमें प्रेम नहीं है, उसका अनाक्रामक रहना कायरता है। वह न मनुष्य है और न पशु। उसने तो यह साबित कर दिया है कि वह किसीकी रक्षा करने के योग्य नहीं है।

अपने प्रतिद्वन्द्वीके मुकाबले किसी अहिंसक प्रतिरोधीमें कितनी जबर्दस्त शक्ति होती है यह बात मैंने अनुभव कर ली है। लेकिन स्पष्ट है कि मेरी तरह पत्र लेखक भाई इसे महसूस नहीं कर सकते। अहिंसात्मक प्रतिरोधमें एककी इच्छा-शक्ति दूसरेकी इच्छा-शक्तिसे टकराती है। यह प्रतिरोध भी तभी सम्भव है, जब शरीर-बलका-सहारा लेना बिलकुल छोड़ दिया जाये। शरीर-बलका सहारा लेनेमें आम तौरपर यह बात निहित रहती है कि शरीर-बल क्षीण हो जानेपर प्रतिरोधी आत्म-समर्पण कर देगा। क्या पत्र लेखकको यह मालूम है कि जिस नारीमें दृढ़ इच्छा-शक्ति होगी वह अपने साथ बलात्कार करनेको आये कितने ही शक्तिशाली व्यक्तिका भी प्रतिरोध सफलतापूर्वक कर सकती है?

मैं यह स्वीकार करता हूँ कि सबल लोग दुर्बलोंको लूटेंगे ही और दुर्बल होना पाप है। लेकिन दुर्बलता पाप है, यह बात मनुष्यकी आत्माके सम्बन्धमें कही गई है, शरीरके सम्बन्धमें नहीं। अगर शरीरके सम्बन्धमें ऐसा कहा जाये, तब तो हम दुर्बलताके पापसे कभी मुक्त हो ही नहीं सकते हैं। लेकिन आत्माकी शक्ति अपने खिलाफ हथियारबन्द होकर खड़ी सारी दुनियाकी ताकतका मुकाबला कर सकती है। यह शक्ति शरीरतः दुर्बलसे-दुर्बल व्यक्ति भी प्राप्त कर सकता है। जूलू लोग शरीरसे भीमकाय होते हुए भी इच्छा-शक्तिके मामलेमें कमजोर हैं। इसीलिए वे एक छोटेसे गोरे बच्चेके सामने अवश हो जाते हैं। हृष्टपुष्ट शरारती लड़कोंको अपनी दुर्बल माताओंके सामने अवश होकर आत्मसमर्पण करते किसने नहीं देखा है? यहाँ पुत्रकी पशुतापर प्रेम विजय पाता है। जो नियम माता और पुत्रके बीच चलता है, वह सर्वत्र लागू किया जा सकता है। यह भी जरूरी नहीं कि प्रेम देनेवालेको प्रेम मिले ही। प्रेम तो अपना पुरस्कार आप ही है। बहुत-सी माताओंने प्रेमके बलपर गलत राह पर चलनेवाले अपने जिद्दी बच्चोंको वशमें कर लिया है। तो हम सब प्रेम-