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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  तिरुपति नगर परिषद्की एक रिपोर्टमें उसके अधीनस्थ स्कूलोंमें कताई-सम्बन्धी आँकड़े दिये गये हैं।

नगर परिषद्के स्कूलोंमें कताई तीन साल पहले ही लागू की गई; लेकिन इस कामको सुचारु रूप १९२४ में दिया गया। १९२४ के अन्ततक बच्चोंने ५४ वर्ग गज कपड़के लायक सूत काता था। प्रति घंटा औसतन सिर्फ १०० गजकी रफ्तार है और ५ से ३० अंकतक का सूत काता जाता है।

मैं शिक्षकों तथा स्कूलोंमें कताई-कार्यका समायोजन करनेवालोंका ध्यान इस बात की ओर आकृष्ट करना चाहूँगा कि स्कूलोंमें चरखोंके स्थानपर तकलियोंका प्रयोग करना हर तरहसे बेहतर है। स्कूलोंमें सामूहिक रूपसे की जानेवाली कताईके लिए तो अन्तमें तकली ही अधिक लाभदायक, कम खर्चीली और अधिक सूत देनेवाली साबित होगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ६-५-१९२६

४९०. सुदूर अमेरिकासे

कुछ समय पहले मैंने अमेरिकासे एक सज्जन द्वारा पूछे गये कुछ प्रश्नोंके उत्तर दिये थे।[१] अब उन्होंने अपनी आलोचना फिर दुहराई है और आगे और भी कई प्रश्न पूछे हैं। इनमें से पहला इस प्रकार है:

वह साहसी और निर्भीक मनोवृत्ति किस कामकी है, जो उस चीजकी रक्षामें सहायक न हो सके, जिससे आपको प्रेम है? हो सकता है, आपको मृत्युका भय न हो, लेकिन अगर आप अन्ततक अहिंसापर दृढ़ रहेंगे तो फिर आप लुटेरोंके किसी दल द्वारा अपनी प्यारी वस्तु लुटने से किस तरह बचा पायेंगे? जिन्हें कोई लुटेरा लूट रहा हो, वे अगर हिंसात्मक तरीकोंसे उसका प्रतिरोध नहीं करते हैं तो उन्हें लूटना तो उसके लिए उस हदतक आसान ही हो जायेगा। संसारमें लूट चल रही है और जबतक ऐसे लोग रहेंगे जिन्हें आसानीसे लूटा जा सकता हो, तबतक वह चलती रहेगी। चाहे प्रतिरोध किया जाये या न किया जाये, सबल लोग दुर्बलोंको लूटेंगे ही। दुर्बल होना पाप है। इस दुर्बलतासे, चाहे जैसे भी हो, छुटकारा पानेकी कोशिश न करना अपराध है।

पत्र-लेखक भाई यह भूल जाते हैं कि प्रति प्रहार बराबर सफल नहीं होता। यह भी तो हो सकता है कि लुटेरा यदि अधिक सबल हुआ तो रक्षकको अवश कर

  1. देखिए "एक विद्यार्थीके प्रश्न", २५-२-१९२६।