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४८७. पत्र: उदित मिश्रको

साबरमती आश्रम
मंगलवार, ४ मई, १९२६

भाई उदित मिश्रजी,

आपका पत्र कई महिनोंके पहले मिला था। परन्तु मैं शीघ्रतासे उत्तर नहीं भेज सका। जिसको हम दुराचारी समझते हैं, उसकी घृ[णा] तो दिलमें नहीं होनी चाहिए, परन्तु ऐसे लोगोंका बगैर कारण परिचय भी नहीं करना चाहिए। अर्थात् उनकी आध्यात्मिक सेवा करनेका कोई प्रसंग मिलनेसे ही हम उसका परिचय करें..[१] सब बातोंमें ही मनुष्यकी विवेकदृष्टिकी परीक्षा हो जाती है।

बालकोंका संरक्षक बनना बड़े विद्यार्थियोंके बननेसे कठिन है। जब एक पिता अपने बालकोंको हमारी रक्षामें रखता है तब हम बड़ी जिम्मेदारी सरपर उठा लेते हैं। हम पिताका स्थान लेते हैं। इसलिए जितना प्रेम पि [ता] का होना चाहिए इतना हमारेमें उन बालकोंके लिए होना आवश्यक है। परन्तु पिताके प्रेममें मोह आ जाता है; संरक्षकके मनमें केवल निःस्वार्थता और शुद्धताकी ही होनी चाहिए। और क्योंकि बालक अनुकरण करनेवाले हैं इसलिए जो गुणकी वृद्धि उनमें चाहते हैं वह सबका पालन हमें करना चाहिए। इस दृष्टिसे संरक्षकमें ब्रह्मचर्य, सत्य, अहिंसा, निर्भयता, शौर्य, उदारता, नम्रता विशेष रूपमें होने चाहिए।

मूल प्रति (एस॰ एन॰ १९५२९ ) की माइक्रोफिल्मसे ।

४८८. प्रस्ताव: दक्षिण आफ्रिकाके सम्बन्धमें

५ मई, १९२६

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठक ५ मईको अहमदाबादमें हुई तथा उसमें दक्षिण आफ्रिकाके सम्बन्धमें गांधीजी द्वारा तैयार किया गया निम्न प्रस्ताव पास किया गया:

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी भारत सरकार और संघ सरकारको दोनों सरकारोंकी एक परिषद्में कुछ निश्चय होनेतक वर्ग क्षेत्र संरक्षण विधेयकको निलम्बित रखनेके लिए बधाई देती है।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी दक्षिण आफ्रिकी भारतीय शिष्टमण्डल और भारतीय प्रवासियों को भी उनके प्रयत्नोंके शुभ परिणामोंके लिए बधाई देती है।

  1. साधन-सूत्रमें यह अस्पष्ट है।