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पत्र: एस॰ सदानन्दको

  इसके अतिरिक्त एक और कठिनाई भी है। आजकल आश्रममें बहुत भीड़-भाड़ है, अतः आपको देनेके लिए मेरे पास कोई खाली कमरा नहीं है। इसलिए शायद जो एकान्त आप चाहते हैं और जिसकी व्यवस्थामें करना भी चाहूँगा, उस एकान्तकी व्यवस्था नहीं कर सकूँगा। अगर इसके बावजूद...[१] अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५२५) की माइक्रोफिल्मसे।

४८४. पत्र: डी॰ वेंकटरावको

साबरमती आश्रम
३ मई, १९२६

प्रिय भाई,

आपका पत्र मिला और कृष्णाबाईका भी। मैं स्थितिको समझता हूँ और उसकी कद्र करता हूँ। मैं आपके और कृष्णाबाईके इस विचारसे बिलकुल सहमत हूँ कि उसे अपनी चित्रकारीकी प्रतिभाका विकास करनेका अवसर मिलना चाहिए। इसलिए मैं उसकी इस इच्छा को समझता हूँ कि वह आपके साथ रहकर चित्रकारीका अपना काम जारी रखे। उसकी चित्रकारीके कुछ फोटो मुझे भेज दिये जायें तो अच्छा हो। उसको मैं अलगसे नहीं लिख रहा हूँ। आप बीच-बीचमें उसकी प्रगतिकी सूचना मुझे देते रहें।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत डी॰ वेंकटराव


उमेरला हाउस


राज-महेन्द्री

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५२६) की माइक्रोफिल्मसे।

४८५. पत्र: एस॰ सदानन्दको

साबरमती आश्रम
३ मई, १९२६

प्रिय सदानन्द,

तो आखिर आपकी एजेंसी खुल ही गई। अब आपका संवाददाता एसोसिएटेड प्रेसके संवाददाताकी तरह ही यहाँ आये और जो भी जानकारी मिल सके, प्राप्त करे। चूँकि मेरे पास बतानेको कुछ है ही नहीं इसलिए बेचारा महादेव या सुब्बैया अथवा प्यारेलाल आपको क्या दे सकते हैं? बेशक मैं खादीके विषयमें हररोज तार भेज सकता हूँ, लेकिन यह तो आपकी एजेंसीका भट्टा बैठा देनेवाली चीज होगी

  1. साधन-सूत्रमें पत्र अधूरा है।