पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/४७१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

४८०. काठियावाड़ी खादी

काठियावाड़के तीन खादी केन्द्रोंका काम देखनेके बाद भाई लक्ष्मीदासने जो विवरण भेजा है, पाठक उसे लगभग पूराका-पूरा इसी अंकमें देखेंगे।

अमरेली खादी कार्यालयकी व्यवस्थाका भार काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्ने अपने हाथमें ले लिया है। उसका हिसाब मैं थोड़े ही समयमें 'नवजीवन' में प्रकाशित करने का इरादा रखता हूँ। इस समय तो मैं पाठकों का ध्यान भाई लक्ष्मीदासके विवरणकी ओर ही खींचना चाहता हूँ।

पाठक देखेंगे कि जहाँ अकाल-जैसी स्थिति है, केवल वहीं कताईके पैसे देकर खादी तैयार करवाई जाती है। यह खादी महँगी है अथवा सस्ती इसका विचार हम फिलहाल नहीं करते। अभी तो इतना स्वीकार कर लेना पर्याप्त है कि यद्यपि खादीक़ी किस्ममें पहलेकी अपेक्षा बहुत सुधार हुआ है तथापि वह खादी उसी अंकके मिलके सूतके बने कपड़ेके बराबर मजबूत नहीं होगी। फिर भी काठियावाड़ियोंको तो काठियावाड़की ही खादी पसन्द करनी चाहिए। उपर्युक्त रिपोर्ट पढ़नेके बाद इस बारेमें किसीको शंका नहीं होनी चाहिए। यदि यह रिपोर्ट सच्ची है तो काठियावाड़की खादी पहननेवाले अकालकी-सी स्थितिसे पीड़ित लोगोंकी मदद करते हैं। अकालग्रस्त लोगोंको दान देनेकी अपेक्षा उन्हें काम देकर स्वावलम्बी बनाना कहीं अधिक अच्छा है। इस बारेमें तो विवाद हो ही नहीं सकता और दान देनेकी शक्ति सबमें नहीं होती। परन्तु महँगी खादी लेकर और उसकी पूर्ति अपनी आवश्यकताके कपड़ेमें अन्यत्र कटौती करके, मदद देनेकी शक्ति तो सामान्य स्थितिके लोगोंमें भी होती है।

अतएव मुझे उम्मीद है कि इस समय अब्बास साहब काठियावाड़में जो फेरी लगा रहे हैं उसका स्वागत सब लोग करेंगे। मेरे पास बढ़वानकी रिपोर्ट आई है। मैं उससे देखता हूँ कि वढ़वानके लोगोंने तो अब्बास साहबका स्वागत किया है और किसीने भी उनकी अवहेलना नहीं की है। मैं उम्मीद रखता हूँ कि जैसे-जैसे उनकी यात्रा आगे बढ़ेगी वैसे-वैसे उन्हें अधिक मदद मिलती जायेगी।

भाई लक्ष्मीदासके विवरणमें खादी सेवकोंके बारेमें जो सुझाव है वह ध्यानमें रखने लायक है। कुएँमें जितना ज्यादा पानी होता है कुण्डमें उतना ही ज्यादा पानी आता है। जितनी निष्ठा सेवकोंमें होगी वे उतनी ही निष्ठा दूसरोंको दे सकेंगे। जो शक्ति उनमें नहीं है उसका विकास वे अन्य लोगोंमें नहीं कर सकते। कातनेवाली बहनें पींजना सीख लें तो उनकी कमाई दुगुनी हो जाये और जनताको अच्छा सूत मिले; तब उन्हें पींजनेके दाम भी मिलने लगेंगे, जो उन्हें आज नहीं मिलते। सेवक जबतक स्वयं अच्छी तरह नहीं पींज सकते तबतक बहनोंको प्रोत्साहन नहीं दे सकते और उन्हें सिखा तो कैसे सकते हैं?

जो बात पींजनेके बारेमें लागू होती है वही बात सूतकी मजबूती जाँचनेके बारेमें भी लागू होती है। सूत मजबूत करनेके लिए उसकी मजबूती जाँचनेकी विधिका