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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ली जानेवाली कुछ स्वतन्त्रता निर्दोष हो सकती है; किन्तु यदि हम ऐसी स्वतन्त्रता लेनेका प्रयत्न करेंगे तो दोषके पात्र होंगे। इंग्लैंडके युवक वर्गमें जो अपवित्रता दिखाई देती है उसका कारण, मैंने जिस मर्यादित स्वतन्त्रताका वर्णन किया है, वह नहीं है; बल्कि उसके पीछे अन्य समझमें आने योग्य कारण हैं। जो मनुष्य शराबके दोषोंको जानकर उससे दूर रहता है वह भी भीरु नहीं, वरन् ज्ञानी अर्थात् विवेकी है। विकारका मूल मानसिक मूर्छामें, अविवेकमें और मनुष्यके ध्येय सम्बन्धी अज्ञानमें निहित है। मैंने ब्रह्मचर्य पालनके सम्बन्धमें जो सुझाव दिये हैं वे पढ़ी हुई बातोंके उद्धरण अथवा बुद्धिसे सोचे हुए अनुमान नहीं हैं, अपितु मेरे और अन्य लोगोंके दीर्घकालीन अनुभवोंका संग्रह है। इसलिए मेरी तुम्हें सलाह है कि तुम 'आत्मकथा' के १९ वें प्रकरणको, उसे पूरी तरह समझे बिना दरगुजर मत कर देना। मैं "अन्नाहारी" और मात्र खादीका कुरता और टोपी पहननेवाले, बाहरसे सादे, परन्तु विचारोंमें विलासिताके पोषक व्यभिचारियोंको जानता हूँ और अपने देशके रिवाजके मुताबिक मांसाहारी तथा बचपनसे कोट-पतलूनके आदी ब्रह्मचारियोंसे भी परिचित हूँ। सादगी मुख्य रूपसे विचारोंकी होनी चाहिए। जो मनसे मांसाहारी हो और अपनी कल्पनामें रंगमहलके विलासोंमें लोटता हो, उसका शरीर मात्र फलाहार ही क्यों न करता हो तथा उसपर एक फटा कम्बल ही क्यों न हो तथापि तुम ऐसा न समझो कि वह व्यक्ति निर्दोष है अथवा निर्दोष रह सकता है। जो विकार रहित रहना अथवा होना चाहते हैं उन्हें सतत जाग्रत रहना होगा। तुम जाग्रत पुरुषकी सावधानीको भीरुता मानते जान पड़ते हो और यदि यह बात सच है तो तुम भयंकर भूलमें पड़े हुए हो। तुम सँभल जाओ।

चेतावनी

अदनसे एक सज्जन अपने पत्रमें लिखते हैं कि बेनीबाईके नामसे ज्ञात कोई बहन अदन पहुँची है और अपने आपको मेरी बेटी बताकर भोले-भाले लोगोंको ठग रही है। ठीक यही बात रंगून और मोम्बासामें भी हुई थी। ऐसा मालूम होता है कि वहाँ भी यहीं बहन पहुँची होगी। मैं कुछ समय पहले चेतावनी दे चुका हूँ कि मेरी कोई बेटी ही नहीं है और अपने नामसे पैसा उगाहने अथवा मदद माँगनेका मैंने किसीको अधिकार नहीं दिया है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २-५-१९२६