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  अफवाहें सुनी हैं कि इन मन्दिरोंका अधिकार और प्रबन्ध मुझे सौंपा जानेवाला है। इन शिकायतोंपर विचार करनेके बजाय आज जो वस्तुस्थिति है मैं उसे बता देता हूँ। मुझे भाई दयालजी और भाई कल्याणजीका दस वर्षका अनुभव है। उन्होंने जब समितिकी ओरसे मुझे कहा कि इस मन्दिरकी व्यवस्था ठीक करनेका रास्ता इसे मुझे सौंपनेके सिवा और दूसरा नहीं है, तब मैंने उस उत्तरदायित्वको स्वीकार कर लेना उचित समझा। पत्र-लेखक मुझे बताते हैं कि अब जब विनय-मन्दिर नष्ट होनेकी स्थितिमें आ पहुँचा है, तब उसकी मृत्युका उत्तरदायी मुझे बनानेके लिए वह मेरे हाथमें सौंपा गया है। ऐसा हो तो भी अपने साथियोंका दायित्व जहाँ भी मैं बाँट सकता हूँ वहाँ उसे बाँट लेनेसे मैं कैसे पीछे हट सकता हूँ? इसको हाथमें लेते हुए मैंने साफ-साफ बता दिया है कि मैं वल्लभभाईकी सलाहके बिना तथा विद्यापीठकी देखरेखके बाहर कोई कदम नहीं उठा सकूँगा। यह शर्त इन भाइयोंने मंजूर की है। अब मैं उसका ट्रस्ट बनानेकी इच्छासे वल्लभभाईसे बातचीत करना चाहता हूँ। इस बीच विनय-मन्दिरके कुलनायक श्री नृसिंह प्रसादकी सम्मतिसे भाई नरहरि परीखको फिलहाल मन्दिरका आचार्य नियुक्त किया गया है और उन्हें मन्दिरको चलानेके लिए जो फेरफार करना उचित लगे और शिक्षकोंमें वृद्धि अथवा कमी करना ठीक लगे वैसा करनेका अधिकार प्रदान किया गया है। पाटीदार आश्रममें जो मन्दिर चल रहा था वह गोपीपुराकी पाठशालामें मिला दिया गया है। इससे लगभग छ: शिक्षकोंकी कमी की जानेकी आशा की जाती है। पाठ्यक्रममें भी जो सुधार आवश्यक जान पड़ेंगे किये जायेंगे। छुट्टियाँ खत्म होने और विनय-मन्दिरके खुलनेपर श्री नृसिंह प्रसाद मन्दिरकी हालतकी जाँच करनेके लिए जानेवाले हैं और यद्यपि मन्दिरका नियन्त्रण मुझे सौंप दिया गया है तो भी इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि भाई दयालजी और भाई कल्याणजी अब विनय-मन्दिरको भूल जायेंगे। वे भूलेंगे नहीं, इतना ही नहीं, वरन् इस कार्यमें मेरे हाथ-पाँव तो ये भाई ही रहेंगे। इसलिए मुझे उम्मीद है कि जो व्यापारी इस स्कूलका खर्च चलानेके लिए चन्दा दे रहे हैं वे अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार चन्दा देते ही रहेंगे। स्कूलका हिसाब प्रमाणपत्रके साथ, नियमित रूपसे प्रकाशित किया जायेगा।

न॰ अ॰ प॰ को

मुझे तो तुम्हारा प्रश्न ही विकार-पोषक जान पड़ता है। मैंने अपने इंग्लैंडके जीवनके जो उदाहरण[१] दिये हैं उनका विलासिता या अविलासितासे कोई सम्बन्ध नहीं है; वह तो केवल रिवाजकी बात है। जैसे गरम देशमें रहनेवाले मनुष्यको ठण्डे प्रदेशमें जानेपर सदा ठण्डे देशमें रहनेवाले लोगोंकी अपेक्षा हमेशा बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है, मैंने हिन्दुस्तानके युवक वर्गके लिए वैसी ही सावधानीकी आवश्यकता मानी है। मेरा आशय यह नहीं था कि इंग्लैंडके सब अथवा अधिकांश युवक नितान्त शुद्ध रह सकते हैं अथवा रहते हैं। बल्कि मेरा आशय यह बताना था कि इंग्लैंडमें

  1. देखिए, आत्मकथा, अध्याय १९।
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