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४७७. पत्र: किशोरलाल मशरूवालाको

साबरमती आश्रम
शनिवार, चैत्र बदी ४ [१ मई, १९२६][१]

चि॰ किशोरलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम व्यर्थ ही आत्मनिन्दा करते हो। मैं बहसमें नहीं पड़ना चाहता; लेकिन अपना निर्णय बताये देता हूँ कि...[२] भाईकी लड़की और सब बच्चों को लेकर तुम्हें यहीं आना है। यदि वहाँ गोमतीको वैद्यकी दवा अनुकूल आ रही हो तो ठीक है, नहीं तो मैं चाहूँगा कि वायु-परिवर्तनका और वैद्यका भी विचार छोड़कर यहींकी अच्छी-बुरी हवामें रहो। गोमतीके लिए जब हमने उपवासका प्रयोग आरम्भ किया तभी मैंने दवाकी बात मनसे निकाल दी थी। अच्छीसे-अच्छी दवा हम आजमा चुके हैं। अब मेरी वृत्ति तो ऐसी है कि सारी बाजी भगवानके हाथ छोड़ दें। तथापि एक मास डुमसमें रहनेकी इच्छा होती हो तो वहाँ चले जाना। तुम इस समय जिस स्थितिमें पड़ गये हो उस स्थितिमें बालुभाईको ही रसोइया मान लेना ठीक होगा। बालुभाईके साथ इतना तो बन्दोबस्त कर ही लेना कि बच्चोंको तुम्हें सौंप देनेके बाद इस व्यवस्थामें कोई हेर-फेर न करे और इन दोनों भाइयोंके लिए "क्यूरेटर बोनिस" (हित रक्षक) तो नियुक्त किया ही जाना चाहिए। मेरा सुझाव है कि जमनालालजीको कर दें। मसूरी जाना किसलिए रद हो गया है यह तो तुम्हें अच्छी तरहसे मालूम हो गया होगा। मैं तो जानता ही था कि नाथको यह अच्छा लगेगा। फिनलैंडकी बात ऐसी है: वहाँ सारी दुनियाके विद्यार्थियों...[३] गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५२०) से।

४७८. पत्र: नरगिस कैप्टेनको

साबरमती आश्रम
१ मई, १९२६

आपका पत्र मिला। अब आपको मेरी मसूरी यात्रा रद होने और महाबलेश्वर न जानेके बारेमें सब-कुछ मालूम हो गया है। मैंने गवर्नरको लिखा था कि मेरे लिए उनसे पूना या बम्बईमें मिलना अधिक सुविधाजनक होगा। इसलिए उन्होंने भेंटको अपने पहाड़से लौट आनेतकके लिए स्थगित कर दिया है। समयकी बचत

  1. मसूरी यात्राके रद किये जाने और फिनलैंड जानेके उल्लेखसे।
  2. जैसा कि साधन-सूत्रमें है।
  3. जैसा कि साधन-सूत्रमें है।