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४७५. पत्र: देवचन्द पारेखको

साबरमती आश्रम
शनिवार [१ मई, १९२६][१]

भाईश्री ५ देवचन्दभाई,

आपका पत्र मिला। मकानका[२] नक्शा बनाकर ठाकोर साहबको[३] अनुमतिके लिए लिखो। यदि वे अनुमति दे दें तो नींव रख ही डालें। मनसुखलाल स्मारकके जो पैसे हैं, उनका उपयोग इसमें न किया जाये?

बापू

[पुनश्च:]

पोरबन्दरसे अभीतक कोई समाचार नहीं मिला है। वहाँ हो आओ तो ठीक होगा।[४]

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ५७०७) की फोटो-नकलसे।

४७६. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको

साबरमती आश्रम
शनिवार, १ मई, १९२६

सुज्ञ भाईश्री,

आपका पत्र पढ़कर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं नहीं समझता था कि आपका हाथ इतना सशक्त हो गया होगा और आप लिख सकते होंगे। मेरी माँगके अनुसार मुझे कल तार तो मिल ही गया था और आज आपके ही हाथका लिखा पत्र भी मिल गया है। मुझे उम्मीद है कि थोड़े दिनोंतक मुझे आपकी ओरसे पत्र अथवा कार्ड मिलते ही रहेंगे। खुराक जो आप ले रहे हैं, बहुत ठीक है। दूधको ओटाते तो नहीं हैं? उपवासके बाद ओटाया दूध कदापि नहीं पिया जाता। सोडेका उपयोग सहायक है। जब आप घूमने-फिरने लायक हो जायें तब मैं आपसे मिलने और आपके मुखसे इस प्रायश्चित्तको कथाको सुननेको उत्सुक हूँ।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५१९) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. डाककी मुहरसे।
  2. राष्ट्रीय स्कूलका।
  3. राजकोटके राजासाहब लाखाजीराज।
  4. यह गांधीजीके स्वाक्षरोंमें है।