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पत्र: रामेश्वरदास पोद्दारको

  तो कौंसिल प्रवेशके कारण ही हैं। जबतक असहयोगी लोग कौंसिलोंसे दूर रहे, जनताको उस दूषित प्रभावसे बचाया जा सका, लेकिन अब जब असहयोगी उस निषिद्ध फलका स्वाद ले चुके हैं, यह स्वाभाविक ही है कि वे जनताके कुछ भागको उसके दूषित प्रभावके दायरेमें खींच रहे हैं। इन सब बातोंसे हमें खीजना नहीं चाहिए। यह शुद्धीकरणकी प्रक्रियाका एक परिणाम है। जो थोड़े-से लोग अभी कौंसिलोंसे बाहर हैं, वे यदि फैशनके लिए नहीं, बल्कि अपने आन्तरिक विश्वासके कारण बाहर बने रहते हैं तो इतना ही काफी होगा।

आशा है, आपका स्वास्थ्य अच्छा चल रहा होगा। क्या आप कांग्रेसके रचनात्मक कार्यक्रममें कोई सक्रिय हिस्सा ले रहे हैं।

हृदयसे आपका

श्रीयुत कोण्डा वेंकटप्पैया गारू


शेषम्मा धर्मशाला


बंगलौर सिटी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५२४) की माइक्रोफिल्मसे।

४७४. पत्र: रामेश्वरदास पोद्दारको

साबरमती आश्रम
शनिवार [१ मई, १९२६][१]

भाई रामेश्वरजी,

आपका पत्र मिला। ५० रुपये मिल जायेंगे। आपका मानसिक व्याधि नहीं मिटा है तबतक शारीरिकका मिटना कठिन है। थोड़ी मुदतके लिये आप कोई एकान्त स्थलमें रहें तो फायदा होनेका संभव है। राम नाम तो है ही है।

आपका,
मोहनदास

मूल पत्र (जी॰ एन॰ १६३) की फोटो-नकलसे।

  1. डाककी मुहरसे।