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४७२. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

साबरमती आश्रम
१ मई, १९२६

प्रिय सतीशबाबू,

अभी तो शंकरलाल यहाँ नहीं है। प्रवर्तक संघका मामला अभीतक अधरमें लटका हुआ है और स्वभावतः संघवाले कर्जेके लिए आग्रह कर रहे हैं। इसलिए मैंने एक दस्तावेज[१] तैयार किया है, जिसकी एक प्रतिलिपि आपको साथमें भेज रहा हूँ।[२] मोतीबाबूके नाम लिखे अपने पत्रकी भी एक प्रतिलिपि भेज रहा हूँ।

आपको ६,००० रुपये भेजे जा रहे हैं। जब मोतीबाबू उस दस्तावेजपर हस्ताक्षर करके आपके पास भेज दें तो आप रुपये दे दीजिए।

आपका,

संलग्न—२

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १११७४) की माइक्रोफिल्मसे।

४७३. पत्र: कोण्डा वेंकटप्पैया गारूको

साबरमती आश्रम
१ मई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपके पत्र मिल गये थे। आन्ध्रकी महीन खादीके मूल्योंके बारेमें बम्बईकी महिलाओंकी शिकायतसे सम्बन्धित पत्र भी मिला, जिसका उत्तर दे रहा हूँ। मैंने सारा पत्र-व्यवहार इन बहनोंके पास भेज दिया है। अब उन्हें स्थिति समझमें आ गई है। मैं उन्हें आपसे मिली प्रामाणिक जानकारी देना चाहता था, ताकि वे जैसी कार्रवाई करना चाहें कर सकें।

समझौता और मौजूदा हालातोंके सम्बन्धमें जो आशंकाएँ आपके मनमें उठती हैं, वे मेरे मनमें भी उठती हैं। पर मुझे पूरा विश्वास है कि देर-सबेर सब-कुछ अपने-आप ठीक हो जायेगा। समझौतेमें मैंने केवल एक मध्यस्थका काम किया है। कौंसिल-प्रवेशके मसलेपरमें अपने मनको मना नहीं सकता। ज्यों-ज्यों समय गुजरता जाता है, मेरा यह विश्वास और भी दृढ़ होता जाता है कि हमारी कुछ समस्याएँ

  1. देखिए "अ॰ भा॰ च॰ संघसे ऋण लेनेके लिए इकरारनामेका मसविदा", १-५-१९२६।
  2. मोतीलाल राम।