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सन्देश: 'फ्रीडम' को

हिसाब रखना पड़ता है। मशीनकी बैठक टूट जानेके कारण उसे बेचनेकी कोई जरूरत नहीं है। बैठक तो थोड़े-से खर्चसे ठीक हो सकती है। रामी, कान्ति आदि आनन्दमें हैं। रसिक आबू गया है। मथुरादासका स्वास्थ्य ठीक है। देवदास फिलहाल यहीं है।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५१८) से।

४६६. सन्देश: 'फ्रीडम' को

१ मई, १९२६

'फ्रीडम' (स्वतन्त्रता) किसी भी पत्रके लिए एक आकर्षक नाम है। लेकिन इस शब्दका काफी दुरुपयोग किया जाता है। जब गुलामका मालिक स्वतन्त्रताकी बात करता है तो हम जानते हैं कि उसकी नजरमें स्वतन्त्रताका अर्थ बिना किसी विघ्न-बाधाके अपने गुलामसे जैसा जी चाहे वैसा काम लेनेकी स्वतन्त्रता होता है। किसी शराबीकी स्तवन्त्रताका अर्थ यह है कि जबतक वह अपना होश न खो दे तबतक तथा उसके बाद भी बहुत देरतक वह पी सके। यह पत्र किसकी और कैसी स्वतन्त्रताका समर्थन करेगा, यह संगत प्रश्न है। पण्डित मोतीलालजी इसके संस्थापक हैं, यह अपने-आपमें इस बातका एक आश्वासन है कि यहाँ स्वतन्त्रताका अर्थ जनसाधारणकी स्वतन्त्रता है। और जनसाधारणकी स्वतन्त्रताका मतलब यह है कि वह, उसमें से जो करोड़ों लोगोंको आधा पेट खाकर जीनेकी स्थितिमें रह रहे हैं, उस स्थितिका मुकाबला कर सके और उसे दूर कर सके। इस समय स्वतन्त्रताका यही पहलू मुझे सबसे अधिक सुहाता है, क्योंकि जनसाधारणकी स्वतन्त्रतामें अछूतोंकी स्वतन्त्रता तथा विभिन्न धर्मावलम्बियोंके बिना किसी रोक-टोकके अपनी धार्मिक मान्यताओंके अनुसार चलनेकी स्वतन्त्रता भी स्वभावतः निहित है। जबतक हाथ-कताईको पुनरुज्जीवित नहीं किया जाता और इसलिए जबतक खादीके जोरदार प्रचारको अपने कार्यक्रमका एक केन्द्रीय बिन्दु मानकर हम नहीं चलते तबतक जनसाधारणकी वैसी स्वतन्त्रता जैसी स्वतन्त्रताका मैंने वर्णन किया है, सर्वथा असम्भव है।

मैं आशा करता हूँ कि 'फ्रीडम' अपने पाठकोंको जन-साधारणके जीवनके इस मुख्य तथ्यका राष्ट्रीय महत्त्व बराबर समझाता रहेगा; क्योंकि अगर हम स्वराज्य चाहते हैं तो हमें जनसाधारणसे तादात्म्य स्थापित करना ही होगा।

मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ १९५२३) की माइक्रोफिल्मसे।