४६३. पत्र: जयसुखलालको
साबरमती आश्रम
शुक्रवार, ३० अप्रैल, १९२६
तुम्हारा पत्र मिला। चि॰ मगनलालने जो टीका की है उसे मैं तुम्हारी जानकारीके लिए भेज रहा हूँ। लगता है, अब्बास साहब बहुत सुन्दर काम कर रहे हैं। मोटरके बारेमें रामजीभाईको क्या लिखूँ? तुम्हारे लिखनेका भावार्थ मैं यह समझता हूँ कि रामजीभाई फिलहाल मोटरको वैसे ही रहने दें।
गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५१६) की माइक्रोफिल्मसे।
४६४. पत्र: नगीनदासको
साबरमती आश्रम
शुक्रवार, ३० अप्रैल, १९२६
तुम्हारा पत्र मैंने भाई दर्शनसिंहको भेजा था। उसका जवाब, उसके साथ आये डाक-टिकटों-समेत, तुम्हारी जानकारीके लिए भेज रहा हूँ। उन्हें मैंने सलाह दी है कि यदि वे पुस्तकोंको उपयोगी मानें तो फिर रुपया भेजकर मँगा लें।
गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५१७) की माइक्रोफिल्मसे ।
४६५. पत्र: निर्मलाको
साबरमती आश्रम
शुक्रवार, ३० अप्रैल, १९२६
तुम्हारा पत्र मिला। मेरी तबीयत अच्छी रहती है। मेरी लिखावट खराब है। इसलिए और समय बचानेकी खातिर मैं बोलकर लिखाता हूँ। वजन बढ़ता जाता है। कल वजन लेनेका दिन था; १०५ हुआ है। बुआको तनिक भी घबरानेकी कोई बात ही नहीं है। तुमने लिखा है इसलिए यह पत्र काकूको नहीं पढ़वाऊँगा, यद्यपि इच्छा तो बहुत होती है। मैंने किरायेके लिए अधिकसे-अधिक १० रुपयेकी हद रखी है।
तकली और चरखेके बारेमें जमनादासको लिख रहा हूँ। जमनादास पूनियाँ देगा और उनका जो सूत हो, वह जमनादासको पहुँचाना क्योंकि उसे सारी रुईका