४५९. पत्र: गोपालकृष्ण देवधरको
साबरमती आश्रम
३० अप्रैल, १९२६
आशा है, मनोरमा सकुशल सेवासदन पहुँच गई होगी। वह यहाँसे रविवारको चली थी। प्रबन्धकको यह नहीं मालूम था कि उसे बम्बईतक का किराया जमनालालजीसे पहले ही मिल चुका है, इसलिए उसने किरायेके लिए उसे १० रुपये दे दिये। अतएव आप कृपा करके उससे यह मालूम करें कि जब उसने वहाँ लौटनेकी सोची उस समय सेठ जमनालालजी द्वारा बम्बईतक के किरायेके लिए दिये गये करीब छ: रुपयेका उसने क्या किया। यदि वह पैसा अब भी उसके पास हो तो उससे ले लीजिए और उसे आप सेवासदनके लिए रख लीजिए।
बेशक, मैं आपसे सहकारिता आन्दोलनके बारेमें चर्चा करना और इस तरह उसकी वास्तविक उपयोगिता समझना चाहूँगा। मैंने इसके बारेमें बिहारमें पंजीयक (रजिस्ट्रार) या शायद सहायक पंजीयक तथा सहकारिता आन्दोलनसे सम्बन्धित अन्य मित्रोंसे चर्चा की थी, लेकिन ऐसा पाया कि इसकी उपयोगिता बहुत सीमित है। उसके आगे इस आन्दोलनको जिस रूपमें चलाया जा रहा है, उस रूपमें उसका क्या राष्ट्रीय महत्त्व है, इस विषयमें वे लोग मुझे सन्तुष्ट नहीं कर सके हैं।
हृदयसे आपका,
पूना
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५१३) की फोटो-नकलसे।
४६०. पत्र: भूकनशरणको
साबरमती आश्रम
शुक्रवार, ३० अप्रैल, १९२६
आपका पत्र मीला और इसकी साथ १०० रु० की नोट भी मिली। उसका उपयोग चरखा और खादी-प्रचारमें करना चाहता हूँ, क्योंकि उसीके मारफत ज्यादा कंगाल लोगोंकी सेवा हो सकती है।
मूल प्रति (एस॰ एन॰ १९५१५) की माइक्रोफिल्मसे।