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४५८. पत्र: एस्थर मेननको

साबरमती आश्रम
३० अप्रैल, १९२६

रानी बिटिया,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारे स्वास्थ्यके बारेमें सचमुच मुझे चिन्ता बनी रहती है। तुम्हें फिरसे पहलेकी तरह चुस्त और सशक्त हो जाना चाहिए। तुम्हारी गोद कब भरनेवाली है?

कुमारी पीटर्सनके स्कूलकी हालतके बारेमें सुनकर दुःख हुआ। तुमने जिन लड़कियोंके नाम लिखे थे, उनसे मुझे अभीतक कोई सूत नहीं मिला है। जितना चाहो उतना खादीका गूदड़ और इस्तेमाल की हुई मुलायम खादी तुम्हें मिल सकती है।[१] यदि मुझे बता दो कि तुम्हें कितनी खादी चाहिए तो मैं उतनी खादी भिजवा दूँ। इस्तेमाल की हुई खादीका मूल्य तय कर पाना मुश्किल है। इसलिए तुम या तो जो-कुछ भेज सको, भेज दो अथवा कुछ भी न भेजो। जो खादी तुम मँगवाओ, उसका पैसा देनेके लिए तुम किसी दूसरी मदमें कटौती नहीं करना और न इस कारण, तुम्हें ठीक-ठीक जितनी खादीकी जरूरत हो, उतनेके लिए कहनेमें ही संकोच करना।

मेनन जिस प्रकार गरीब रोगियोंकी मदद कर रहा है, उसके बारेमें जानकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। जबतक तुम्हारा गुजारा चल रहा है तबतक उसके ऐसा करनेसे क्या बनता-बिगड़ता है? और सेवा-कार्य करते हुए यदि किसीका निर्वाह न भी हो पाये तो भी परवाह नहीं।

एन्ड्रयूज कल बम्बई पहुँच रहे हैं।

तुम्हारा,
बापू

अंग्रेजी-पत्र की फोटो-नकल तथा माई डियर चाइल्डसे।
सौजन्य: नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इंडिया
  1. भावी शिशुके लिए पोतडे, गद्दी आदि बनानेके लिए।