पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/४५१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१५
पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

  इस कार्यमें इतनी दिलचस्पी ले रही हैं। यदि आप अस्पतालके काममें लग सकें तो बहुत अच्छा हो। यह काम करने लायक है। जब और बहुत चीजें भुला दी जायेंगी तब भी देशबन्धुका यह स्मारक याद किया जायेगा। यदि यह अस्पताल कलकत्ताके जीवनमें एक जीवन्त शक्ति बन जाये तो उनकी[१] स्मृति अधिक बलवती होगी।

मैं आपको अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीकी बैठकमें साबरमती आनेका प्रलोभन नहीं दूँगा। मैं नहीं समझता कि आप यहाँकी खुश्क गर्मीको सहन कर सकेंगी, पर पूजाकी छुट्टियोंमें, जब यहाँ वर्षाका मौसम जोरोंपर होगा, यहाँ आना बहुत अच्छा रहेगा। तब आप जितने लम्बे समयतक चाहें यहाँ रुक सकती हैं और यदि कलकत्तेमें आपकी आवश्यकता नहीं हुई तो आप असम जानेतक भी यहाँ रह सकती हैं।

आपका,

श्रीमती उर्मिला देवी
कलकत्ता

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५११) की फोटो-नकलसे।

४५७. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

साबरमती आश्रम
३० अप्रैल, १९२६

प्रिय सतीश बाबू,

आपका पत्र मिला, साथमें बौद्ध धर्मपर लिखी पुस्तक भी। आपने बड़ी सावधानी और सफाईसे, जो आपकी अपनी खूबियाँ हैं, उसके जरूरी पृष्ठोंपर निशान लगा दिये हैं। जिस दिन पुस्तक मिली, उसी दिन मैं इन पृष्ठोंको अच्छी तरह पढ़ गया—किसी और कारणसे नहीं तो इसीलिए कि आपने मेरे लिए जरूरी पृष्ठोंको जिस प्रकार करीनेसे बाँध दिया था, वह मुझे बहुत अच्छा लगा।

मगर हेमप्रभा देवीके बारेमें तो आपने अबतक मुझे कुछ नहीं बताया। क्या बात है?

आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५१२) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. देशबन्धु चित्तरंजन दासकी।