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४५५. पत्र: प्यारेलाल नय्यरको

साबरमती आश्रम
३० अप्रैल, १९२६

प्रिय प्यारेलाल,

तुम्हारा तो कोई पत्र ही नहीं मिला है। मुझे इस तरह अन्देशेमें मत रखो। तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा है और तुम अपना समय किस तरह बिताते हो?

कताई-सम्बन्धी निबन्धके विषयमें मैं वरदाचारी और गणेशनके साथ पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ। इसलिए निबन्ध तुमको नहीं भेजा है। लेकिन पूरी प्रति तैयार होनेपर भेज दूँगा। सुब्बैया आजकल उसीमें लगा हुआ है।

मथुरादासका पत्र मिला है। सिंहगढ़ और माथेरानमें से मुझे तो सिंहगढ़ ही ज्यादा पसन्द है। फिर, श्री अम्बालाल यहाँ हैं भी नहीं। अगर जरूरी हो तो बेशक मैं उनका पता ढूँढ़कर उन्हें तार करके यह जाननेकी कोशिश करूँ कि उनका बंगला मिल सकता है या नहीं। इसलिए अगर डॉ॰ मेहता माथेरान जानेके पक्षमें हों और अगर अम्बालालके बंगलेकी जरूरत हो तो तुम मथुरादाससे बात करके मुझे तार, कर दो।

तुम्हारा,

श्रीयुत प्यारेलाल नैय्यर
देवलाली

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन० १९५१०) की माइक्रोफिल्मसे।

४५६. पत्र: उर्मिलादेवीको

साबरमती आश्रम
३० अप्रैल, १९२६

प्रिय बहन,

आपका पत्र मिला। मेरे स्वास्थ्यकी चिन्ता न करें। पिछले सप्ताह मेरा वजन एक पौंड बढ़ा है। गर्मीसे मुझे कोई परेशानी नहीं होती, यद्यपि इस समय तो हम वास्तवमें गर्मीसे झुलस रहे हैं।

आपने अपने अस्पतालका जो विवरण भेजा है, उसे पढ़कर प्रसन्नता हुई। विवरणके आनेमें देरी होनेसे मैं कुछ परेशान-सा हो गया था। जब आप डॉ॰ विधानसे[१]मिलें तो उनसे मेरा नमस्कार कहें और उन्हें बधाई दें। मुझे खुशी है कि आप

  1. डॉ॰ विधानचन्द्र राय।