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टिप्पणियाँ

  पाठक देखेंगे कि इस तालिकामें सबसे ऊपर उस व्यक्तिको रखा गया है, जिसने ४६ अंकका सूत काता है। जिस व्यक्तिने सबसे ऊँचे अंकका सूत काता है, उसका नाम अन्तिम नामके ठीक ऊपर आता है। किसी समय कताई प्रतियोगितामें सर्वप्रथम आनेवाली अपर्णादेवीको १९ वें स्थानपर रखा गया है, यद्यपि उन्होंने ११३ अंकका सूत काता है। तालिकाके साथ निम्नलिखित टिप्पणी भेजी गई है:

इन सूतोंको इनकी सफाई और एकरूपताके कारण बुनकर अलग कर लिया गया है, लेकिन इनमेंसे अच्छेसे-अच्छा सूत भी मिलके सूतकी बराबरी नहीं कर सकता।

इसलिए इन अच्छे अंकोंके सूतोंको आसानीसे नहीं बुना जा सकता। इसलिए ऊपरकी तालिका प्रकाशित करनेके पीछे इन कतैयोंको प्रोत्साहन देनेका जितना खयाल रहा है उतना इस बातका नहीं कि लोग इसे एक उदाहरण मानकर उसका अनुकरण करें। चूँकि ये कतैये अपने हिस्सेका सूत अधिक नियमित रूपसे भेजते रहे हैं और इन्होंने काफी उद्यम और लगनका परिचय दिया है, इसलिए उनसे अनुरोध है कि ये अधिक कौशलसे भी काम लें ताकि वे आजकी अपेक्षा अधिक मजबूत सूत कात सकें।

श्रीयुत लक्ष्मीदास पुरुषोत्तम अब यह सिद्ध करनेके लिए प्रयोग कर रहे हैं कि अगर अच्छी रूई हो और धुनाई अच्छी तरह की गई हो तो ऐसा अच्छा सूत कातना सम्भव है जो उसी अंकके मजबूतसे-मजबूत मिलके सूतको मात दे सके। आशा है, इन प्रयोगोंके परिणाम मैं जल्दी ही प्रकाशित कर सकूँगा। इस बीच उक्त २७ कतैयोंसे यह अपेक्षा की जायेगी कि वे भी प्रयोग करें और आजतक जैसा सूत भेजते रहे हैं, उससे अधिक मजबूत सूत भेजें। मुझे आशा है कि वे इस बातको समझते होंगे कि सुतका तार खींचते समय ही बट देना चाहिए, न कि हर बार तार खींच लेनेके बाद। वे यह भी समझते होंगे कि सूतको फिरकीपर से उतारनेसे पहले उसपर पानीका छिड़काव कर देना चाहिए और जबतक नमी सूतमें समा न जाये तबतक उसे फिरकीपर से उतारा न जाये।

पूर्ण मद्य-निषेध

एक सज्जन लिखते हैं:[१]

शराब की दुकानें बन्द करनेके लिए मैं ग्रामवासियोंको बधाई देता हूँ। लेकिन, अगर इसी बातके लिए जनमत संग्रह किया जाता तो पंजाबकी ही तरह शायद बहुत कम लोगोंने अपने मत देनेकी तकलीफ उठाई होती। इसके लिए व्यक्तिगत रूपसे समझाकर उन्हें तैयार करना जरूरी होता।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २९-४-१९२६
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने सूचित किया था कि अमुक गाँवोंमें शराबकी दुकानें बन्द हो जानेसे लोग अत्यन्त प्रसन्न हैं।