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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
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  पर बन्द कर रखा गया है?' कोचीन सरकारने निर्लज्ज भावसे जो कारण बताये, वे इस प्रकार थे; ये सड़कें मन्दिरों और राजमहलके बहुत पास पड़ती हैं। अतीतसे चली आ रही रूढ़िको एकाएक नहीं तोड़ा जा सकता। पुराने रीति-रिवाजोंका खयाल तो रखना ही है। पाठक इस 'राजमहल' शब्दपर ध्यान दें। इससे तो कोई भी यही निष्कर्ष निकालेगा कि पंचमोंको व्यक्त्तिशः जाकर राजाको अपना निवेदन सुनानेका अधिकार नहीं है, क्योंकि उनका राजमहलमें प्रवेश करना तो दूर रहा, वे उसके आसपास की सड़कोंपर भी कदम नहीं रख सकते। जिन अधिकारियोंने यह क्रूरतापूर्ण उत्तर दिया वे सब योग्य, शिक्षित और सुसंस्कृत लोग हैं, और जीवनके अन्य क्षेत्रोंमें उनके दृष्टिकोण काफी उदार भी हैं, लेकिन वे एक क्रूरतापूर्ण, निष्ठुर और धर्म-विरुद्ध प्रथाको मात्र इस आधारपर उचित साबित करते हैं कि वह प्रथा पुराने जमानेसे चली आ रही है।

कानूनकी किताबें तो हमें यही सिखाती हैं कि अपराधों और अनैतिकताओंके पक्षमें कोई ऐसी दलील नहीं चल सकती कि ये तो समाजमें पुराने जमानेसे प्रचलित हैं। उनके पुराने जमानेसे प्रचलित होनेसे ही वे सम्माननीय नहीं हो सकते। लेकिन, स्पष्ट है कि कोचीन राज्यमें बात इससे उलटी है। इस बातसे कौन इनकार कर सकता है कि अस्पृश्यता एक अनैतिक, बर्बर और क्रूरतापूर्ण प्रथा है? इस प्रकार कोचीन राज्यके कानून एक तरहसे दक्षिण अफ्रिकाके कानूनोंसे भी बहुत खराब हैं। दक्षिण आफ्रिकाका परम्परागत कानून गोरी और रंगदार जातियोंके बीच समानताको स्वीकार करनेके लिए तैयार नहीं है। कोचीनका परम्परागत कानून जन्मके आधारपर एक वर्ग विशेषको असमानताका पात्र मानता है। लेकिन कोचीनमें बरती जानेवाली असमानता दक्षिण आफ्रिकामें बरती जानेवाली असमानताकी तुलनामें लाख दर्जे अमानवीय है। कारण, दक्षिण आफ्रिकामें किसी रंगदार व्यक्तिको जितने मानवीय अधिकारोंसे वंचित रखा जाता है, कोचीनमें अस्पृश्योंको उससे कहीं अधिक अधिकारोंसे वंचित रखा जाता है। दक्षिण आफ्रिकामें किसी रंगदार व्यक्तिका किसी गोरेके पास न फटकने या उसकी दृष्टिसे दूर रहने जैसा तो कोई प्रतिबन्ध नहीं है। यहाँ मेरी इच्छा यह दिखानेकी नहीं है कि अकेले कोचीनमें ही अस्पृश्योंके साथ ऐसा अशोभन व्यवहार किया जाता है। सच तो यह है कि दुर्भाग्यवश आज भी भारत-भरमें हिन्दुओंका कमोबेश यही हाल है। लेकिन, कोचीनमें अस्पृश्यताको तथाकथित धार्मिक विधानकी मान्यता प्राप्त होनेके अलावा राज्यकी मान्यता भी प्राप्त है। इसलिए वहाँ जनमतको जागृत-भर कर देनेसे कुछ बन-बिगड़ नहीं सकता; वहाँ तो जनमतको इतना प्रबल होना होगा कि वह राज्यको इस बर्बर प्रथाको खत्म करनेके लिए बाध्य कर सके।

सुधार की गुंजाइश

अखिल भारतीय चरखा संघके तकनीकी विभागके प्रबन्धकने नियमित रूपसे सूत भेजने वाले निम्नलिखित कतैयोंके नाम[१] भेजे हैं। इन सबके सूत २५ से अधिक अंकके हैं और इनके सूतकी लच्छियाँ भी बहुत अच्छे ढंगसे बनी हुई हैं।

  1. नामोंकी यह सूची यहाँ नहीं दी जा रही है।