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छल करे; वे तो तब भी यही कहेंगे कि "ऐ मानव! तुम्हारे तमाम दोषोंके बावजूद मुझे तुमसे प्यार है।" और उनका यह मानव-प्रेम उन्हें भेदकी समस्त दीवारोंको लाँघकर लोगोंके हृदयमें सीधे प्रवेश करनेकी सामर्थ्य देता है। दक्षिण आफ्रिकामें भी, जहाँ दूसरों को शायद दुत्कार दिया जाता, लोगोंने उनकी बात बहुत अच्छी तरह सुनी। उन्होंने पैडिसन शिष्टमण्डलके लिए रास्ता तैयार किया।

पैडिसन शिष्टमण्डलका उल्लेख हुआ है तो मैं यहाँ इतना और बता दूँ कि शिष्टमण्डलके प्रस्थानके समय श्रीयुत च॰ राजगोपालाचारीने श्री पैडिसनकी प्रशंसामें जो शब्द कहे थे, उनकी पुष्टि दक्षिण आफ्रिकाके एक भाईके पत्रसे भी होती है। उन्होंने वहाँसे लिखा है कि:

वे जन्मसे अंग्रेज हैं, किन्तु उनका दृष्टिकोण भारतीय है। सच तो यह है कि मुझे उनके और श्री एन्ड्रयूजके बीच कोई फर्क ही नहीं दिखाई देता। यह बड़े आश्चर्यकी बात है कि उनके-जैसा प्रतिभावान् व्यक्ति मात्र मद्रासके श्रम-आयुक्तके पदतक ही पहुँच पाया है। बहरहाल मैं यह कहनेकी स्थितिमें नहीं हूँ कि इसका कारण भारतके प्रति उनकी तीव्र सहानुभूति ही है या और कुछ।

मुझे जितने भी सूत्रोंसे जानकारी मिली है, सबसे यही प्रकट होता है कि शिष्टमण्डलके सदस्योंने अपने कर्त्तव्यका पालन बहुत अच्छी तरह और पूरी ईमानदारीके साथ किया है। लेकिन, श्री एन्ड्रयूजने जमीन तैयार करनेका जो काम किया और इस दिशामें जितना परिश्रम किया उसके बिना इस शिष्टमण्डलने जितना काम किया, उसका आधा भी न कर पाता।

अस्पृश्यताके चंगुलमें

त्रावणकोरमें सत्याग्रह हुआ था, इसलिए वहाँ फैली अस्पृश्यता और अनुपगम्यता (अनएप्रोचेबिलिटी) के बारेमें हमने बहुत-कुछ सुना है। कष्टसहन रूपी दीपशिखा त्रावणकोरकी गन्दगीको तो प्रकाशमें ले आई, लेकिन लगता है, यह गन्दगी त्रावणकोरसे भी ज्यादा कोचीनमें है। वहाँ कोचीन विधान-सभामें इस आशयका एक प्रस्ताव पेश करनेकी बार-बार कोशिश की गई कि कोचीन राज्य सार्वजनिक सड़कोंके उपयोगके लिए अस्पृश्योंपर लगे प्रतिबन्धको समाप्त करे। किन्तु, यह प्रस्ताव पेश करनेकी अनुमति कभी नहीं दी गई।

एक लगनशील सदस्यने कोचीन विधान-सभामें यह प्रश्न पूछा कि 'ऐसे कितने तालाब और कुएँ अस्पृश्योंके उपयोगके लिए बन्द हैं, जिनका इन्तजाम सरकार अथवा नगरपालिकाओंके पैसेसे किया जाता है?' उत्तरमें बताया गया कि ऐसे तालाबोंकी संख्या ६१ है और कुँओंकी १२३। अगर पूरक प्रश्न पूछकर यह जाननेकी कोशिश की जाती कि कितने कुँओं और तालाबोंका उपयोग अस्पृश्य लोग कर सकते हैं तो अच्छा होता।

दूसरा प्रश्न यह था कि लोक-निर्माण-कार्य विभाग द्वारा बनायी गई और उसीके रख-रखावमें रहनेवाली कुछ-एक सड़कों का उपयोग अस्पृश्योंके लिए किस आधार