पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/४४१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०५
दक्षिण आफ्रिका

नहीं है। संघ सरकार इस बातपर आग्रह नहीं कर सकती थी कि स्वदेश-वापसीकी अमुक योजना पहलेसे ही स्वीकार कर ली जाये। निदान, उसने "पाश्चात्य जीवन-स्तर" का यह नया सूत्र ढूँढ निकाला। ऊपरसे देखने मैं तो यह शर्त बहुत निर्दोष है, लेकिन, जैसा कि मैं दिखा चुका हूँ, इसके सहारे ऐसी शर्तें भी पेश की जा सकती हैं जिनका पालन करना असम्भव हो। इसलिए बहुत-कुछ इस बातपर निर्भर करेगा कि दोनों पक्ष क्या-क्या माल-मसाला लेकर सम्मेलनमें जाते हैं और भारत सरकार कितनी ताकत दिखाती है। अबतक तो वह यही करती आई है कि जहाँ-कहीं विवाद हुआ, उसने भारतीयोंकी माँगोंपर आग्रह करना छोड़ दिया और इसीको बहुत श्रेयकी बात माना कि संघ-सरकार जो-कुछ करना चाहती थी, वह सबका-सब उसने उसे नहीं करने दिया। यह तो वैसा ही हुआ जैसे कोई कहे कि अमुक मामलेमें न्यायाधीशने चोरके पास चोरीका सारा माल नहीं रहने दिया। यह नहीं भूलना चाहिए कि दक्षिण आफ्रिकी सरकारने भारतीय अधिवासियोंको हर बार, स्पष्टतः बिना किसी उचित कारणके, दक्षिण आफ्रिकाके शान्तिप्रिय नागरिकोंके रूपमें उनके न्यायोचित अधिकारोंसे वंचित करनेकी ही कोशिश की है। इसलिए अगर भारत सरकार अपने दायित्वके प्रति ईमानदार होती तो आज उसे यह दिखा सकना चाहिए था कि उसने ऐसे हर प्रसंगपर हारी हुई बाजी जीत ली। किन्तु, तथ्य यह है कि अगर १९०७ में इन अधिवासियोंने कानूनको एक तरहसे अपने हाथमें न ले लिया होता तो वे अपना सब कुछ खो बैठते और उनके इस सर्वस्व-अपहरणके षड्यन्त्रमें भारत सरकार मौन सहमति देनेकी भागी होती। कारण, भारत सरकार और साम्राज्य-सरकार तो १९०७ के उस नृशंस एशियाई अधिनियमपर पहले ही सहमति दे चुकी थीं, जिसे तत्कालीन उपनिवेश-मन्त्री लॉर्ड एलगिनने १९०६ में अपने निषेधाधिकारका प्रयोग करके अस्वीकार कर दिया था। इसलिए, यद्यपि इस विधेयकका स्थगित किया जाना और सम्मेलन बुलानेपर सहमत हो जाना इस संघर्षकी एक बहुत बड़ी सफलता है, लेकिन अगर ठीक मौका आनेपर भारत सरकार ढीली पड़ गई तो इस लाभको विफल प्रयत्न ही माना जायेगा।

इसलिए, अगर इस लाभको गँवा नहीं देना है तो जनताके लिए यह बहुत आवश्यक है कि वह सदाकी भाँति सतर्कतासे काम ले। बीचमें जो समय मिल गया है, उसका पूरा-पूरा उपयोग करके इस समस्याका बारीकीसे अध्ययन करना चाहिए और इस बातको सिद्ध करनेके लिए प्रमाण जुटाना चाहिए कि अगर भारतीय अधि- वासियोंका कोई अपराध साबित किया जा सकता है तो वह यह कि वे जन्मसे एशियाई हैं और उनकी चमड़ी रंगदार है। यह एक कानूनी अपराध है। कारण, सार-रूपमें देखें तो दक्षिण आफ्रिकी संविधान यही तो कहता है कि "गोरी जाति और रंगदार तथा एशियाई जातियोंके बीच कोई समानता नहीं हो सकती।" दक्षिण आफ्रिका जन्मपर आधारित जाति-भेदमें उतना ही विश्वास करता है जितना हम भारतीय लोग करते हैं।

और अन्तमें, मैं एक बार फिर वही बात कहूँगा जो इन स्तम्भोंमें पहले भी कह चुका हूँ अर्थात् प्रवासियोंकी मुक्तिका उपाय अन्ततः उन्हीं के हाथोंमें है। अगर