पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/४३९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



४४८. पत्र: नाजुकलाल नन्दलाल चौकसीको

साबरमती आश्रम
बुधवार, २८ अप्रैल, १९२६

भाईश्री नाजुकलाल,

यह पत्र भी तुम्हारे नाम किन्तु दोनोंके लिए है। पति-पत्नी दोनोंको आवश्यकता पड़नेपर पैनी अथवा सोटीका उपयोग करनेका अधिकार है। अन्तर सिर्फ इतना है कि यह पैनी भी सत्याग्रहीकी गालीकी तरह सत्याग्रही प्रकारकी ही होना चाहिए। मोतीको तो इस पत्रसे मैं यह नोटिस दिये देता हूँ कि आलस्य और लिखावट दोनोंके लिए कमसे-कम मैं तो पैनीका उपयोग अवश्य करनेवाला हूँ। भले ही वह उसके डरसे आश्रमका त्याग करना चाहे तो करे। आश्रमका त्याग करनेके बाद वह तुम्हारे ही पास तो जायेगी न? अन्धविश्वासी और ईश्वरपरायण व्यक्ति, दोनोंमें साम्य है। दोनोंके काम हास्यास्पद होते हैं और दोनोंका विश्वास अदृश्यपर होता है। जहाँ कोई निश्चय न हो सकता हो, जहाँ सिद्धान्तकी बात न हो वहाँ जो व्यक्ति ईश्वरके दिये हुए समयको बेकार सोचने-विचारनेमें बर्बाद करता है वह या तो अभिमानी होता है अथवा मूर्ख होता है। मैं मूर्ख नहीं हूँ और न अभिमानी ही हूँ। मैं तो ईश्वरपरायण व्यक्ति हूँ इसलिए मित्रोंके झगड़ेको टालनेके लिए चिट्ठी डालकर समय बचाया। मसूरी जाऊँ तो क्या? न जाऊँ तो क्या? नदीमें रहना और मगरसे बैर करना, यह बात जैसे अनुचित है वैसे ही हिन्दुस्तानमें रहना और बारह महीने ठंडक ढूंढ़नेका प्रयत्न करना है।

बापूके आशीर्वाद

श्रीयुत नाजुकलाल नन्दलाल चौकसी


राष्ट्रीय केलवणी मण्डल


भड़ौच

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १२१२७ ए) की फोटो-नकलसे।