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४४४. पत्र: डॉ॰ माणिकबाई बहादुरजीको

साबरमती आश्रम
२७ अप्रैल, १९२६

प्रिय माणिकबाई,

आपका प्रिय पत्र मिला। उसे पाकर प्रसन्नता हुई। यदि मैं एक दिनके लिए भी महाबलेश्वर जाता तो आपके यहाँ अवश्य ठहरता, परन्तु अब वहाँ जानेकी जरूरत नहीं रह गई है। मैंने गवर्नर महोदयको उनके इस गर्मीके समाप्त होनेपर पहाड़से लौटने तकके लिए भेंट स्थगित रखनेके लिए लिखा था और वे इसके लिए राजी हो गये हैं। इससे मेरा कुछ दिनका समय बचेगा, हालाँकि साथ ही मैं आपसे और श्री बहादुरजीसे मिलनेके सौभाग्यसे भी वंचित रह जाऊँगा।

उन्होंने मुझे पत्र लिखकर याद दिलाया कि वे डॉक्टर नहीं हैं, लेकिन चूँकि मैं उन्हें जाननेसे पहले आपको जानता था, इस कारण पत्र लिखवाते समय जल्दीमें मैं यह अन्तर भूल गया। पर इसके लिए मैं क्षमा नहीं माँगूँगा, क्योंकि शिष्टताके नाते एक डॉक्टरके पतिको भी डॉक्टर कहनेमें मुझे कोई हर्ज नहीं दीखता।

क्या आपको अपनी भेजी बनियानोंकी याद है? और क्या आपको यह भी याद है कि आपको मुझे और भी बनियानें भेजनी हैं? मैं आपसे अपने वादेको पूरा करनेके लिए नहीं कहूँगा, क्योंकि इस भयंकर गर्मीमें मुझे उनकी आवश्यकता नहीं पड़ सकती। पर इसकी याद मैं आपको इसलिए दिला रहा हूँ, ताकि जब भी मुझे आवश्यकता हो आपके इस वादेका सहारा तो ले सकूँ।

आप सबको स्नेह वन्दन।

हृदयसे आपका,

डॉ॰ माणिकबाई बहादुरजी
कोमरा हॉल, पंचगनी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५०९) की फोटो-नकलसे।