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पत्र: एस॰ श्रीनिवास अय्यंगारको

शीघ्रतासे करनेके लिए आप शायद वरदाचारीसे भी मिलना या पत्र-व्यवहार करना चाहेंगे।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५०७) की माइक्रोफिल्मसे।

४४३. पत्र: एस॰ श्रीनिवास अय्यंगारको

साबरमती आश्रम
२७ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका तार मिला था। आपकी भेंटकी रिपोर्ट मैंने कल ही देखी। आशा है, आप अ॰ भा॰ कां॰ कमेटीकी बैठकके अवसरपर साबरमती आयेंगे।

मैं आपकी स्थिति और कठिनाईको पूरी तरह समझता हूँ। एक ही भूमिका, जो मैंने उस समय निभाई थी और जो मुझे अब भी निभानी चाहिए, वह है शान्ति-सद्भावना स्थापित करवानेवाले व्यक्तिकी भूमिका। कौंसिलोंमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। इस सम्बन्धमें मुझे एक उदासीन व्यक्ति समझा जाना चाहिए। मेरे बारेमें लगभग इतना ही कहा जा सकता है।

मैं कौंसिलके कार्यको सार्वजनिक जीवनपर पड़े कौंसिल-प्रवेशके प्रभावको तथा हिन्दू-मुस्लिम सवालपर होनेवाले उसके असरको जितना ही गौरसे देखता हूँ, मुझे इस बातकी उतनी अधिक प्रतीति होती जाती है कि कौंसिल-प्रवेश निरर्थक ही नहीं, नासमझीका काम है। मैं उस दिनका स्वागत करूँगा जब १९२० के सहयोगियोंमें से कमसे-कम कुछ लोग कौंसिलोंको उनके भाग्यपर छोड़ देंगे और मर्जी हो तो चरखा कार्यक्रममें योग देंगे अथवा अपनी पसन्दका अन्य कोई कार्य करने लगेंगे। यदि ऐसा हुआ तो मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि जब भी लड़ाईका समय आयेगा, ये लोग आगे आनेको तैयार एक विशेष सुरक्षित सेनाका काम देंगे, तथापि यह मेरा अपना विचार है। अभी तो मैं अपने इस विचारको अपनेतक ही सीमित रखता हूँ; और व्यक्त भी करता हूँ तो सिर्फ आप जैसे दोस्तोंके सामने ही व्यक्त करता हूँ। इसे जनताके सामने रखने का समय अभी नहीं आया है। जनताके सामने इसे रखनेका अर्थ होगा उसका कुछ भी भला किये बिना उसे व्यथित करनेवाली अन्य बहुत-सी बातोंमें एक और जोड़ देना। इसलिए यह केवल आपके पढ़नेके लिए ही है। शेष मिलनेपर।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एस॰ श्रीनिवास अय्यंगार
अमजद बाग, माइलापुर, मद्रास

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५०८) की फोटो-नकलसे।