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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  मोतीलालजीका भी यही प्रयत्न है। लेकिन जहाँ हृदय भिन्न हैं वहाँ एकता कैसे साधी जा सकती है? आदर्श-भेदसे भी हृदय भिन्न हो जाते हैं न! एक ओर राजा और दूसरी ओर प्रजा, ऐसे दो ही पक्ष हों, यह इष्ट है। लेकिन इस समय मैं इसे सम्भव नहीं मानता। जब हम हृदयमें इस बातको महसूस करेंगे तब दूसरा कुछ करनेको नहीं रह जायेगा। लेकिन इस समय जो नहीं है उसे अस्तित्वमें लानेका हमें निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए।

आप यदि अहमदाबाद आयेंगे और दो-एक दिन रह सकेंगे तो ज्यादा चर्चा करेंगे।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

श्री चन्द्रशंकर पण्ड्या


हाईकोर्ट वकील
चाइना बाग, गिरगाँव


बम्बई

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १९९१२) की माइक्रोफिल्मसे।

४४२. पत्र: एस॰ गणेशनको

साबरमती आश्रम
२७ अप्रैल, १९२६

प्रिय गणेशन,

आपका तार मिला। मैं आपको निबन्धके[१] उतने हिस्सेकी नकल भेज रहा हूँ जितना अबतक टाइप किया जा चुका है। कुल मिलाकर निबन्ध सौ पृष्ठोंका होगा। इसके आधारपर आपको मुझे अपनी सही दरें भेज सकना चाहिए। शुरूमें इसे 'नवजीवन' कार्यालयकी मार्फत छपवानेका विचार था। चूँकि वरदाचारी मद्रासमें हैं और चूँकि मुझे पता चला है कि निबन्धको मद्रासमें शायद कम खर्चमें छपवाया जा सकता है, इसलिए मैंने यह सोचा कि 'नवजीवन' को छापनेके लिए देनेका निर्णय करनेसे पहले मैं आपकी दरें मालूम कर लूँ।

पुस्तकके लिए जितना कागज जरूरी है, उतना पहले ही खरीद लिया गया है। इसलिए यदि आप निबन्ध प्रकाशित करेंगे तो कागज आपके पास भेजना होगा। इसलिए कागजके मूल्यको छोड़कर २,००० प्रतियाँ छापनेकी लागत आप मुझे लिख भेजें। और आप यह भी सूचित करें कि पूरी सामग्री आपके हाथमें पहुँच जानेकै बाद आप ठीक-ठीक कितने दिनोंमें प्रतियाँ तैयार करके दे देंगे।

मेरे लिए वरदाचारीसे भी यह पूछताछ करना जरूरी होगा कि वह मद्रासमें रहकर इस सब कामको अपनी जिम्मेदारीपर करवा सकते हैं या नहीं। सारा काम

  1. एस॰ वी॰ पुणताम्बेकर और एन॰ एस॰ वरदाचारी लिखित हैंड स्पिनिंग एण्ड हैंड विविंग——एन ऐसे(हाथ-कताई और हाथ-बुनाई——एक निबन्ध)।