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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपके पास समय बच रहता है तो आप मेरे पास आ जायें तब मैं आपको यह बताने का बीड़ा उठाता हूँ कि इसी क्षेत्रमें आप बहुत-कुछ करना भूल गये हैं।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

भील सेवा मण्डल
दोहद

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १९९०७) की माइक्रोफिल्मसे।

४३२. पत्र: रामू ठक्करको

आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

भाईश्री रामू,

आपका पत्र मिला। आपने मुझे युगसृष्टा बनाया और मेरी सलाह माँगी लेकिन युगसृष्टा बनाकर उसका संहार भी अपने हाथों ही कर दिया। सलाह माँगते-माँगते आपने ही मुझे सलाह दे डाली। किसी वैद्यके पास समस्त रोगोंकी एक ही औषधि है, यह जानते हुए भी यदि कोई पुरुष उसके पास जाकर उससे उस औषधिके सिवा कोई दूसरी औषधि माँगता है तो यही कहा जायेगा कि वह उपहास करता है? क्या आपको नहीं लगता कि आपने ऐसा ही किया है और फिर अपने माने हुए युगसृष्टाका मूल्यांकन इस तरह किया है: "आपने स्वराज्य प्राप्त करनेके पीछे अनेक वर्ष, बहुत सारा पैसा और बहुत सारा उत्साह व्यर्थ ही खर्च कर डाला है।" अब कहिए ऐसे युगसृष्टासे आप कैसी शान्तिकी आशा रखते हैं? चरखा आपको अरुचिकर हो तो हो लेकिन आप राम-नामकी निन्दा क्यों करते हैं? यदि राम-नाम लें तो आपकी कल्पनामें जितनी कुमारिकाएँ और स्त्रियाँ हैं उन सबको वहाँसे इसी क्षण मुक्ति मिल जाये। आपने तो ऐसा सोच रखा जान पड़ता है कि "रामनाम" निर्विकार स्त्री-पुरुषोंके लिए है। ऐसे व्यक्तिको "रामनाम" की क्या जरूरत है? इस नामकी महिमाकी खोज करनेवाला स्वयं विकारी था और मैंने जब अपने विकारोंकी अग्निको शान्त करनेके लिए इस नामका उपयोग किया तो मुझे उससे लाभ हुआ इसीलिए मैं अपने-जैसे विकारी स्त्री-पुरुषोंको उसका उपयोग करनेकी सिफारिश करता हूँ।

दुःखी कुमारिकाओं और स्त्रियोंकी संख्या इतनी ज्यादा है जितनी आप समझते हैं। जो दुखी हैं वे कानूनकी सहायता लेना चाहें तो अवश्य ले सकती हैं। हाँ, यह सच है कि इन स्त्रियोंको अपने अधिकारोंका भान नहीं है और जिन्हें है उनमें उसे सिद्ध करनेकी शक्ति नहीं है। इसका एक ही इलाज है——शुद्ध ज्ञानका प्रचार। शुद्ध ज्ञान-प्रचार अर्थात् चरित्रका निर्माण, और चरित्रका निर्माण रामनामके बिना सम्भव नहीं है। इसके सिवा ऐसी दुखी स्त्रियाँ धनहीन होती हैं और यदि वे अपने शीलको बचाना चाहती हैं तो उसके लिए चरखा ही एकमात्र उपाय है। इन्हीं