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पत्र: अमृतलाल ठक्करको

३. पशु मेला खा जाते हैं यह बिलकुल अनुचित बात है। मैला खानेवाली गायका दूध कभी अच्छा नहीं हो सकता। यदि धर्मका विवेकपूर्ण पालन किया जाये तो लोग गलियोंमें मलत्याग करना बन्द कर दें। मल-मात्रका उपयोग खाद बनानेके लिए ही होना चाहिए।

मोहनदासके वन्देमातरम्

श्री डूंगरी कचरा


मु॰ बांभडाई


डाकघर कच्छ बाड़ा

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १९९०६) की माइक्रोफिल्मसे।

४३१. पत्र: अमृतलाल ठक्करको

आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

भाईश्री ५ अमृतलाल,

जबसे आप बात कर गये हैं तबसे मैं इस विषयपर विचार तो करता ही रहा हूँ। जैसे-जैसे विचार करता हूँ वैसे-वैसे मुझे लगता है कि आपको उस नई प्रवृत्तिमें बिलकुल नहीं पड़ना चाहिए। इसमें मैं लोभ देखता हूँ। मैं तो चाहूँगा कि मैंने उसे जिस तरह करनेको कहा है उस तरह करनेके विचारमें भी आप न पड़ें। आपके पास भले नये विचारोंको क्रियान्वित करनेका उत्साह हो——और चूँकि आप अपनेको तरुण मानते हैं इसलिए होगा ही——तथापि आप अपने इस उत्साहका उपयोग अपने दो कार्यों, अन्त्यजों और भीलोंकी सेवाके सम्बन्धमें नये-नये विचार करनेमें ही करें। ऐसा करते हुए भी आपको समयकी तंगी रहेगी। ये दो कार्य ऐसे हैं जिसमें आपके-जैसे एकका ही नहीं बल्कि अनेक पुरुषोंका जीवन समर्पित किया जा सकता है। सेवाके लाभकी भी मर्यादा होती है और होनी चाहिए, यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ। यदि हम ढूँढ़ने बैठें तो जगतके दुःखोंका अन्त नहीं है। सुधार करनेको बहुत-कुछ है, ऐसा हमें कदम-कदमपर महसूस होगा। लेकिन ईश्वरने इन सारे दुःखोंको दूर करनेका बोझ हमारे ऊपर कहाँ डाला है? अथवा यदि डाला है तो उस बोझको उठानेकी कला भी हमें सिखाई है, और वह यह है कि दुःखके इस पहाड़में से एक छोटा टुकड़ा जिसे हम उठा सकते हों, उठा लें और उतना दुःख दूर करनेके लिए कटिबद्ध हो जायें तथा दूसरा कुछ करनेसे साफ इनकार कर दें तो ऐसा लगेगा कि हमने सारे पहाड़का भार उठा लिया है। इस सीधी-सादी, सच बातको यदि मैं आपके हृदयमें उतारनेमें समर्थ हुआ तो आपसे यह प्रतिज्ञा माँगूँगा कि यदि आपको कोई पृथ्वीका राज्य भी दे तो भी आप इन दो कार्योंके सिवा और कुछ नहीं करेंगे और यदि कोई ऐसा समय आये जब आपको ऐसा लगे कि इन दो कामोंके बाद भी