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४२८. पत्र: पुरुषोत्तम मू॰ सेठको

२४ अप्रैल, १९२६

भाईश्री ५ पुरुषोत्तम,

हिन्दु-समाजकी वर्तमान स्थिति दयनीय है, तथापि आशावादी होनेके कारण मुझे इसका भविष्य अच्छा ही दिखाई देता है। बाल-विधवा कन्याका विवाह माँ-बाप स्वयं कर डालें, यह इस मामलेमें सुधार करनेका आसानसे-आसान तरीका है। इस बीच सुधारकोंको मर्यादा बाँधकर भाषणों, लेखों और ऐसे अन्य साधनोंसे इस सुधारका प्रचार करना चाहिए। बाल-विधवाके विवाहको मैं पुनर्विवाह कह ही नहीं सकता। बाल-विवाह शास्त्र-सम्मत नहीं हो सकता और ऐसे विवाहको शास्त्रीय विधिसे हुआ विवाह नहीं कहा जा सकता। विवाहसे बाल-विधवाकी स्थिति सुधरेगी, इस बारेमें मुझे तनिक भी शंका नहीं। ऐसे विवाहसे अनाचार नहीं बढ़ता। ऐसी बालाओंको जबरदस्ती विधवा रखनेसे ही अनाचार बढ़ रहा है। आदर्श विवाहका प्रचार करनेके लिए, जहाँ जंगली विवाह हो रहा हो, वहाँ असहयोग करना चाहिए और जहाँ आदर्श विवाह हो रहा हो वहाँ सहयोग करना चाहिए। वर-वधू दोनोंकी आयु २० वर्षकी हो अथवा वरकी ३० वर्षकी हो तो इसे मैं अनमेल विवाह नहीं मानता। आदर्श स्त्री-शिक्षण मैं उसे कहूँगा कि जिससे स्त्री अक्षरज्ञान प्राप्त करनेके बाद अपनी पवित्रतामें वृद्धि कर सके और कदाचित् विधवा हो जाये तो स्वावलम्बी भी बन सके। वर्णाश्रमके बाहर विवाह होनेकी बातको मैं अनुचित मानता हूँ। वर्ण चार ही हो सकते हैं। वय-प्राप्त विधवाके विवाहको मैं उत्तेजन नहीं देता।

मोहनदासके गांधी वन्देमातरम्

श्री पुरुषोत्तमदास मूलजी सेठ
वाकेला फलीउं, भुज

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १९९०४) की माइक्रोफिल्मसे।

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