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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आत्मा जिस प्रक्रियासे गुजर रही है, वह हृदयके प्रयासकी है। प्रार्थना, आत्म-चिन्तन और सतत जागरूकताके द्वारा इस प्रयासमें बुद्धिका योग प्राप्त किया गया है। ये तीनों गुण तत्त्वतः हृदयके ही गुण हैं और यही सत्यका अधिकाधिक साक्षात्कार करानेके मुख्य साधन रहे हैं। मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा है कि जो भी ज्ञान प्राप्त हुआ है, सब बाहरसे थोपा गया है। मैंने तो यही जाना है कि सारा ज्ञान अपने ही भीतरसे प्राप्त हुआ है। यह हमारे भीतर विद्यमान सत्यके उद्घाटन, उसे बाहर लाने या यों कहिए कि उसपर जमी कड़ी और कुरूप परतोंको हटानेकी प्रक्रिया रही है। दूसरे शब्दोंमें यह प्रक्रिया आत्म-शुद्धिकी प्रक्रिया रही है। मेरी मसूरी यात्रा रद हो गई है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत अमूल्यचन्द्र सेन


लैंग्वेज स्कूल
क्वीन्स हिल


दार्जिलिंग

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५०४) की फोटो - नकलसे ।

४२७. पत्र: सोमनाथको

आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

भाई सोमनाथ,

तुम्हारा पत्र मिला। तुमने बहुत सारे प्रश्न पूछे हैं। अब मैं क्या तुम्हें तनिक धीरज रखनेको कहूँ? 'रामायण', 'महाभारत', मूर्ति-पूजा आदि प्रश्नोंपर 'नवजीवन' में प्रसंगोपात्त चर्चा होती रहती है। यदि तुम उन लेखोंको ध्यानपूर्वक देखोगे तो समझ सकोगे।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९९०३) की माइक्रोफिल्मसे।