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४२४. पत्र: रामदत्त चौपड़ाको

साबरमती आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

प्रिय भाई,

आपका पत्र मिला। मैं खुद टीकेके बिलकुल खिलाफ हूँ। लेकिन यह तो ऐसी बात है, जिसके बारेमें हर आदमीको खुद ही निर्णय लेना चाहिए, सिर्फ दूसरोंके विचारोंकी नकल नहीं करनी चाहिए। कारण, आखिरकार यह कभी-कभी जीवन-मरणका सवाल भी तो बन सकता है। निश्चयपूर्वक ऐसा कह सकना असम्भव है कि टीकेके द्वारा किसीको भी चेचक या इससे भी बुरी बीमारी लगनेसे बचाया नहीं गया है। इसलिए, जो लोग टीका नहीं लेते, वे इस बातको भली-भाँति जानते हुए ही नहीं लेते कि ऐसा करके वे अपने और अपने बच्चोंके चेहरे चेचकसे विकृत हो जाने या अपनी या अपने बच्चों की मृत्युतकका खतरा उठा रहे हैं। किन्तु, साथ ही यह भी सच है कि टीका लगवा लेना चेचक न होनेकी कोई पक्की गारण्टी नहीं है। इसलिए टीका लगवानेसे वे ही लोग परहेज रखें, जो शरीरको आत्माके अधीन मानते हैं और हृदयसे ऐसा विश्वास करते हैं कि टीका लगवाना आत्माके लिए हानिप्रद है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत रामदत्त चोपड़ा


हेड मास्टर
डी॰ बी॰ स्कूल, जनौरी


जिला——होशियारपुर (पंजाब)

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५०२) की फोटो-नकलसे।