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४२२. पत्र: शंकरन् नम्बूद्रीपादको

साबरमती आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपके खिलाफ एक गम्भीर शिकायत आई है कि अभी पिछले ही दिनों त्रिवेन्द्रम् अस्पृश्यता निवारणके सम्बन्धमें बुलाई गई एक सभामें आपने हिंसाको भड़कानेवाला भाषण दिया और कहा कि सुधारके विरोधियोंको सबक सिखानेका एकमात्र उपाय हिंसा ही है। मेरे पास आपके भाषणके अंश हैं, और मुझे बताया गया है कि आपके भाषणको मौकेपर ही शब्दश: लिख लिया गया था। अगर आप यह बताने की कृपा करें कि इस खबरमें कुछ सचाई है या नहीं तो आभार मानूँगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत शंकरन् नम्बूद्रीपाद


कोपरट्टु इल्लम, कोट्टयम्


उत्तर त्रावणकोर

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५००) की माइक्रोफिल्मसे।

४२३. पत्रः शंकरलालको

साबरमती आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

प्रिय भाई,

प्रेम महाविद्यालयके बारेमें आपका पत्र मिला। आचार्य आ॰ टे॰ गिडवानीसे मेरी बातचीत हुई थी। मेरा खयाल है, आप उन्हें अच्छी तरह जानते हैं। वे प्रतिमास २५० रुपये लेंगे। अगर आप उन्हें रखना चाहें तो कहने की जरूरत नहीं कि बाकी छोटी-छोटी बातें तय करनी होंगी। जल्दी सूचित कीजिएगा कि गिडवानी ठीक रहेंगे या नहीं।

हृदयसे आपका,

लाला शंकरलाल
दिल्ली

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५०१) की माइक्रोफिल्मसे।