पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/४१६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

४२१. पत्र: के॰ टी॰ मैथ्यूको

साबरमती आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

प्रिय भाई,

आपका रोचक पत्र मिला। मुझे पूरा इत्मीनान है कि अध्यक्षके सुझावोंके मुताबिक आप अपने प्रस्तावमें परिवर्तन नहीं कर सकते, क्योंकि आप तो "देवासम" मार्गोंको सभी जातियों और मतावलम्बियोंके लिए पूरी तरह खुलवाना चाहते हैं। क्या आप निषेधक नियमको निकाल देने या उसमें संशोधन करनेके लिए कोई प्रस्ताव पेश नहीं कर सकते? अगर यह प्रस्ताव पेश न किया जा सकता हो और अगर आपको कुछ समर्थक मिल जायें तो विरोध-स्वरूप आप सामूहिक रूपसे त्यागपत्र दे सकते हैं। फिर आप चाहें तो दोबारा चुनाव लड़ें और इस बीच इस उद्देश्यके पक्षमें जनमत तैयार करते रहें। आपको सरकारके नाम इन सड़कोंको खोलनेके लिए एक प्रार्थनापत्र दिलानेके लिए भी प्रयत्न करना चाहिए और अगर आपको कुछ ऐसे बहादुर और बलिदानी लोग मिल जायें, जो तथाकथित अस्पृश्य समाजके न हों तो उन्हें कुछ अस्पृश्योंको अपनी सुरक्षामें लेकर उन सड़कोंपर से निकलना चाहिए और उसके परिणामोंका सामना करना चाहिए। लेकिन, ऐसा आप तभी करें, जब सवर्ण हिन्दू काफी संख्यामें मनसे आपके पक्षमें हों। अगर ऐसा न हो, लेकिन आपके पास ऐसे लोग हों जो अनन्त कष्ट झेलनेमें भी सुख मानेंगे तो आप सवर्ण हिन्दुओंके प्रबल समर्थनके बिना भी यह काम कर सकते हैं। अगर यह बलिदानी कदम उठाना सम्भव न हो और इस बातका पूरा भरोसा न हो कि सुधारक लोग हर हालतमें अहिंसा-धर्मपर कायम रहेंगे, तब तो आपको बस अस्पृश्योंके बीच चुपचाप काम करते जाना चाहिए और उनके चरित्रको ऊँचा उठानेमें उन्हें मदद देकर आपको उनके स्तरको ऊपर उठानेकी कोशिश करनी चाहिए।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत के॰ टी॰ मैथ्यू


सदस्य, विधान परिषद्
कोचीन राज्य


कोचीन

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४९९) की माइक्रोफिल्म से।