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४२०. पत्र: सतीशचन्द्र मुखर्जीको

साबरमती आश्रम
२४ अप्रल, १९२६

प्रिय सतीश बाबू,

कुमारी एडगर और दूसरे मित्रोंके हस्ताक्षरोंसे जारी किया गया पत्रक मैंने पढ़ लिया है। इसपर किसीको कोई आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन "युद्धकी सम्भावना खत्म करनेके लिए" विभिन्न प्रकारके प्रचारोंके द्वारा लोकमत तैयार करनेके उद्देश्यसे गठित किसी संस्थाकी उपयोगितामें मुझे सन्देह है। इस समय हमारे देशमें वैसा प्रचार वास्तवमें कोई मानी नहीं रखता।

अमेरिकासे फेलोशिप ऑफ रिकन्सीलिएशनकी तरफसे मुझे बार-बार पत्र मिलते रहे हैं। अब भी मैं उससे पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ, लेकिन मैं उस संगठनमें शामिल नहीं हुआ हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि उसमें मेरा शामिल होना, मेरे लिए उपहास्यास्पद है। क्या चूहोंके खिलाफ लड़ाई बन्द करनेके उद्देश्यसे बनी बिल्लियोंकी किसी संस्थामें एक चूहेका शामिल होना किसी भी तरह उचित होगा? इसलिए हमारे लिए इतना ही पर्याप्त है कि हम अपनी वर्तमान स्थितिको महसूस करते हुए विश्व-शान्तिके लिए "मन ही मन प्रार्थना करें।"

हृदयसे आपका

श्रीयुत सतीशचन्द्र मुखर्जी


मार्फत एस॰ सी॰ गुह


दरभंगा

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४९८) की माइक्रोफिल्मसे।