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४१९. पत्र: जी॰ स्टेनली जोन्सको

साबरमती आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आपके अखबारकी प्रति भी मिली, मगर दो नहीं, एक ही।

यह साप्ताहिक है या मासिक? मेरे सामने जो प्रति है, उसमें तो इसका उल्लेख कहीं नहीं देख रहा हूँ। इस पत्रका उत्तर मिलनेपर अवकाश मिलते ही मैं आपके अखबारके लिए कुछ लिख भेजूँगा।

मैं मसूरी जा रहा था, लेकिन जो लोग मुझे वहाँ भेजना चाहते थे, उन्होंने अब अपना आग्रह छोड़ दिया है और मुझे आश्रममें ही रहने देनेके लिए तैयार हो गये हैं। मैं आपके आश्रम आनेकी प्रतीक्षा करूँगा और उस अवसरकी राह देखूँगा जब आप यहाँ आकर——चाहे जितने भी कम समयके लिए हो——हमारे बीच ठहरेंगे। आपने शायद मुझे बताया था कि आप पहले भी एक-दो दिन आश्रममें रह चुके हैं? अगर किसी कारणवश मैं जुलाईमें आश्रममें न रहूँ तो भी आशा करता हूँ कि आप यहाँ अवश्य आयेंगे। कुछ थोड़ी-सी सम्भावना है कि विश्व छात्र सम्मेलनके सिलसिले में मुझे फिनलैंड जाना पड़े। 'कुछ थोड़ी-सी' इसलिए कह रहा हूँ कि अभीतक यह मामला बातचीतकी अवस्थासे आगे नहीं बढ़ पाया है।

हृदयसे आपका,

श्री जी॰ स्टेनली जोन्स
सीतापुर, संयुक्त प्रान्त

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४९७) की माइक्रोफिल्मसे।