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४१८. पत्र: सी॰ वी॰ कृष्णको

साबरमती आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

प्रिय कृष्ण,

इससे पहलेवाले तुम्हारे पत्र मिले थे। और चूँकि तुमने उनमें से एकमें लिखा था कि तुम मुझे फिर लिखोगे, इसलिए मैंने उनकी प्राप्ति-सूचना नहीं दी।

क्षयरोगके रोगीके विषयमें स्वर्गीय हनुमन्तरावको लिखे मेरे पत्रका उत्तर मुझे मिल गया था। चूँकि वे जानेको तैयार नहीं थे, इसलिए केवल उतनी ही सूचना देनेके लिए तुम्हें पत्र लिखना मैंने आवश्यक नहीं समझा।

मुझे तुम्हारा कार्यक्रम मालूम है। मेरी रायमें, तुमने जैसा बड़ा कार्यक्रम बनाया है, उसके लिए तुम्हारे पास कार्यकर्त्ता बहुत कम हैं। इसलिए मेरी सलाह है कि तुम सावधानीसे कदम बढ़ाओ। वहाँपर इस समय तुम कुल कितने कार्यकर्त्ता हो? तुमने लिखा है कि रुस्तमजी-कोषके ३००० रुपये तुम्हारे पास हैं। उनका क्या करना है? क्या तुम उनका उपयोग अपने काममें नहीं कर सकते? जो भी हो, मैं चाहता हूँ कि तुम हर हालतमें भारतीय चरखा संघके एजेन्टसे पत्र द्वारा सम्पर्क कायम करो। उसे आकर अपने यहाँका काम-काज देख जाने दो और यदि एजेंट तुम्हारे प्रार्थनापत्रका समर्थन करने को तैयार हो तो उसकी मार्फत ही अपना प्रार्थनापत्र भेज दो। तब शायद तुम्हें जितने पैसेकी जरूरत है, उतना दिला सकना मेरे लिए आसान होगा।

उस प्रार्थनापत्रमें तुम अपनी आवश्यकताओं, अपने कार्यकी सम्भावनाओं और कार्यकर्त्ताओंकी संख्या आदिका पूरा-पूरा विवरण दो। इस बीच तुम दस हजार रुपया इकट्ठा करनेका अपना काम आगे बढ़ाओ, क्योंकि उस दिशामें प्रगति होनेसे तुमको अतिरिक्त सहायता दिलानेमें मुझे अधिक आसानी रहेगी। मेरी बातें साफसाफ समझ गये न?

तुमने मुझे लिखा है कि वहाँ रहनेवालोंकी खुराकपर ६ रुपये प्रति माह खर्च होते हैं। कीमतोंकी सूचीके साथ मुझे खुराककी माप लिख भेजो। मापसे मेरा मतलब है, हरएक व्यक्तिको कितना और क्या दिया जाता है।

हृदयसे तुम्हारा,

श्रीयुत सी॰ वी॰ कृष्ण
नेलौर

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४९६) की माइक्रोफिल्मसे।