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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसीपर मुग्ध हूँ। ईश्वर आपको और आपके प्रयत्नोंको सफल बनाये। मसूरी जानेके सवालपर मैंने परची डालकर फैसला कर लिया और उसके अनुसार जानेका विचार त्याग दिया है। जिस प्रसंगसे किसी सिद्धान्तका सम्बन्ध नहीं होता और निर्णय करना कठिन हो जाता है, उस प्रसंगमें मैं इसी पद्धतिसे ईश्वरकी इच्छाको जान लेता हूँ। यह पद्धति मेरे लिए बहुत मूल्यवान साबित हुई है। इसने मेरा बहुत सारा समय बचाया है और इसके कारण मैं बहुत सी परेशानियोंसे भी बचता आया हूँ।

आपका,
मो॰ क॰ गांधी

श्रीयुत् अब्बास तैयबजी


राष्ट्रीय शाला


बढ़वान सिटी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ९५५३) की फोटो-नकलसे।

४१७. पत्र: एक्सेल एफ॰ कुण्डसेनको

साबरमती आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आप यहाँ आये थे, मुझे वह याद है। अगर आप किसी पत्रिकाके लिए मेरे सत्यके प्रयोगकी कहानीका अनुवाद करना चाहते हैं, तब तो आप बिना किसी कठिनाईके अनुवाद कर सकते हैं। लेकिन अगर आप अनुवादको पुस्तक रूपमें प्रकाशित करना चाहते हों, तब तो बात जरा कठिन है, क्योंकि मैकमिलन कम्पनी इसका पूर्ण स्वत्वाधिकार प्राप्त करनेके लिए बातचीत चला रही है और फिर इसके लिए अभी जल्दबाजी करनेकी जरूरत नहीं है, क्योंकि कहानी पूरी होनेमें अभी कुछ समय लगेगा।

हृदयसे आपका,

श्री एक्सेल एफ॰ कुण्डसेन,


शान्ति गेह,
कोडाइकनाल


जिला मद्रास

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४९५) की माइक्रोफिल्मसे।