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पत्र: अब्बास तैयबजीको

  कि यदि अन्तिम और सम्माननीय समझौता हासिल करना है तो भारत सरकार और जनता अपनी सतर्कतामें ढिलाई नहीं आने देगी।

अब चूँकि एक सम्मेलन होना है, अतः भारतको ऐसी आशा करनेका हक है कि विधेयकसे जितने सवाल उठते हैं, उन सबपर सम्मेलनमें विचार किया जायेगा और उन्हें उचित ढंगसे हल किया जायेगा। सवालकी कितनी ही बारीकीसे जाँच की जाये, उससे भारतीय प्रवासियोंको कुछ भी अंदेशा नहीं है और मैं साफ कहता हूँ कि जाँचके अन्तमें उनके विरुद्ध एक ही दोष सिद्ध किया जा सकता है और वह यह कि वे एशियाई हैं और उनकी चमड़ी रंगदार है।

१९१४में जब भारतसे दक्षिण आफ्रिकाको अनियन्त्रित संख्यामें प्रवासियोंके जानेका अंदेशा पूरी तरहसे मिटा दिया गया था, तब उसके साथ ही आर्थिक प्रश्न भी ख़त्म हो गया था। प्रवर समितिके सामने जो आँकड़े पेश किये गये हैं, उनसे असन्दिग्ध रूपसे सिद्ध हो गया है कि भारतीय प्रवासियोंकी संख्या घटती जा रही है, जबकि श्वेत प्रवासियोंकी बढ़ रही है। भारतीयोंके पास जो मामूली-सी अचल सम्पत्ति है, उसकी यूरोपीयोंकी अचल सम्पत्तिमें हुई असाधारण वृद्धिसे कोई तुलना ही नहीं की जा सकती है। भारतीयोंके व्यापार करनेके परवानोंकी संख्या भी हर जगह घट रही है।

दक्षिण आफ्रिकी राजनीतिज्ञ यदि तथ्योंको ईमानदारीसे देखें तो वे यही पायेंगे कि भारतीय प्रवासियोंके विरुद्ध वास्तवमें शिकायतका कोई कारण नहीं है। लेकिन अभी इस समय मैं न तो इस मामलेमें कुछ पूर्वानुमान लगाना चाहता हूँ और न आलोचना करना चाहता हूँ। अभी तो मुझमें केवल राहत और कृतज्ञताकी भावना है। मैं जनरल हर्टजोग और डॉ॰ मलानको, उनके सही प्रसंगानुकूल व्यवहारके लिए, बधाई देता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
फॉरवर्ड, २५-४-१९२६

४१६. पत्र: अब्बास तैयबजीको

साबरमती आश्रम
२४ अप्रैल, १९२६

मेरे प्यारे भुर्रर्र,[१]

आपका पत्र मिला। यद्यपि वहाँ जीवन निष्प्राण-सा लगता है, लेकिन आप तो वहाँ नया प्राण फूँकनेके लिए नौजवानोंवाला उत्साह और उमँग लेकर गये हैं और आपकी आशावादिता वहाँके लोगोंमें अवश्य ही आशाका संचार करेगी। मुझे इसकी परवाह नहीं है कि आप कितनी खादी बेचते हैं। आपने जैसा उत्साह दिखाया है और जिस तरहसे आप इस घोर गर्मी मौसममें कठोर परिश्रम कर रहे हैं, मैं तो

  1. गांधीजी और तैयबजी एक-दूसरेका अभिवादन इसी प्रकार किया करते थे।