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४१५. वक्तव्य: दक्षिण आफ्रिकाको समस्यापर

अहमदाबाद
२४ अप्रैल, १९२६

दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंकी समस्याके मित्रतापूर्ण समाधानके लिए भारत सरकारने दक्षिण आफ्रिकाकी संघ सरकारके सामने एक सम्मेलन बुलानेका प्रस्ताव रखा था और हालमें ही संघ-सरकार द्वारा प्रस्ताव स्वीकार कर लिये जानेकी घोषणा की गई है। इस घोषणाके सम्बन्धमें गांधीजीने एसोसिएटेड प्रेसको निम्न वक्तव्य जारी किया है:

दक्षिण आफ्रिका मिला समाचार निस्सन्देह शुभ समाचार है। इससे भारतीय प्रवासियोंको दम लेनेका अवसर मिला है तथा इस सुन्दर परिणामके लिए प्रत्येक पक्ष——अर्थात् संघ-सरकार, भारत सरकार तथा प्रवासीजन——अपने-आपको बधाई दे सकता है। मेरे विचारसे इसका असली श्रेय श्री सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको है, क्योंकि उनके अटूट उत्साह, श्रद्धापूर्ण सजगता और स्थितिके विशद अध्ययन तथा साथ ही अपने उद्देश्यके प्रति उनकी असाधारण निष्ठाके बिना यह शुभ परिणाम नहीं प्राप्त हो सकता था।

संघ-सरकारने प्रस्ताव स्वीकार करते हुए जो शर्त रखी है उसके पीछे यदि ईमानदारी है तो इसका भारत सरकार द्वारा मान लिया जाना कोई खास अहमियत नहीं रखता। निस्सन्देह संघ सरकारको, जिसे वह पाश्चात्य जीवन-स्तर कहती है, उसकी उचित और वैध तरीकोंसे रक्षा करनेका हक है और इसके लिए जो एकमात्र उचित और वैध तरीके स्वीकार्य हो सकते हैं, उनका सम्बन्ध स्वच्छता और स्वस्थ आर्थिक रीति-नीतिसे ही होना चाहिए। इस प्रकार, उदाहरणार्थ, भारतीय वकीलोंको यूरोपीय वकीलोंसे बराबरीकी स्थितिसे प्रतियोगिता करनी चाहिए और जहाँतक मेरी जानकारी है, कोई भी भारतीय वकील इसके विपरीत आचरण नहीं करता है। लेकिन मुझे पता चला है कि उनतकके साथ भेदभाव बरता जाता है। पैडिसन शिष्टमण्डलके साथ मैंने सहयोग नहीं किया फिर भी मैं यह स्वीकार करूँगा कि उसने बहुत अच्छा काम किया। मुझे मालूम हुआ है कि उसने यह रहस्योद्घाटन किया कि सर्वोच्च न्यायालयमें भी रजिस्ट्रारके सामने कामके सिलसिलेमें सिर्फ वही क्लर्क जा सकता है, जिसकी चमड़ीका रंग गोरा। यदि पश्चिमी जीवन-स्तर सुरक्षित बनाये रखनेका उचित वैध उपाय इसीको कहा जाता है तो उक्त शर्त खतरनाक है। परन्तु मैं एक आशावादी व्यक्ति हूँ। मैं इस शर्तको जैसी वह दिखती है, उसी अर्थमें लूँगा और यदि भारत सरकार इस बातका आग्रह रखेगी कि इस शर्तकी बिलकुल ठीक-ठीक परिभाषा की जाये तो सब ठीक ही रहेगा। मैं आशा करता हूँ