४१२. पत्र: मौलाना शौकत अलीको
साबरमती आश्रम
२३ अप्रैल, १९२६
मुझे पूरी आशा है कि दिल्ली न आनेके लिए आप मुझे माफ कर देंगे। लेकिन मुझे लगा कि कानपुरके प्रस्तावके विपरीत मुझे अहमदाबाद छोड़नेके लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। पण्डितजी और श्रीमती नायडूका भी यही विचार है।
हकीमजीके नाम लिखा मेरा पत्र आपने देख ही लिया है। मैं इससे कोई और अच्छी सलाह नहीं दे सकता था। आशा है, सब-कुछ ठीक-ठाक हुआ है।
आपके चरखेकी मरम्मत कर दी गई है। कल उसे यशवन्त प्रसाद अपने साथ बम्बई ले गये हैं और वह आपको भेज दिया जायेगा।
आपका,
दिल्ली
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४८८) की फोटो-नकलसे।
४१३. पत्र: एन॰ एस॰ वरदाचारीको
साबरमती आश्रम
२३ अप्रैल, १९२६
आपका पत्र मिला। साथमें गणेशनको लिखे पत्रकी एक प्रतिलिपि भेज रहा हूँ। आप इस प्रस्तावपर स्वतन्त्र रूपसे विचार कर सकते हैं। अगर आप मद्रासमें उपस्थित नहीं रह सकते, तब तो बेशक यह प्रस्ताव बेकार है। मैंने यह प्रस्ताव इसीलिए रखा है कि आप अपने कार्य-क्षेत्रके निकटसे निकट रह सकें। अगर जरा भी सम्भव हो तो मैं नहीं चाहता कि आपको इतनी दूर आनेका कष्ट दूँ।
हृदयसे आपका,
इरोद
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४८९) की माइक्रोफिल्मसे।