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४१०. पत्र: जी॰ ए॰ नटेसनको

साबरमती आश्रम
२३ अप्रैल, १९२६



प्रिय मित्र,

साथमें कुमारी रसेनग्रेनका एक लेख भेज रहा हूँ। यह लेख उन्होंने 'यंग इंडिया' में छापनेके लिए भेजा है। मैं इस लेखको छापना नहीं चाहता, क्योंकि इससे एक पुराना विवाद, जिसके बारेमें लगभग हरएक भारतीय अपना विचार स्थिर कर चुका है, फिरसे खड़ा हो जानेका खतरा है। लेखिकाका कहना है कि अगर मैं इसे स्वीकार न करूँ तो 'इंडियन रिव्यू' में छापनेके लिए आपको भेज दूँ। शायद आप लेखिकाको जानते हैं।

मैंने इसकी एक प्रति टाइप करवा ली थी; उसीको भेज रहा हूँ।

हृदयसे आपका,

संलग्न: तीन पृष्ठ


श्रीयुत जी॰ ए॰ नटेसन
सम्पादक
'इंडियन रिव्यू'


जी॰ टी॰, मद्रास।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९४८६) की माइक्रोफिल्मसे।

४११. पत्र: एडा रैसेनग्रेनको

साबरमती आश्रम
२३ अप्रैल, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आपका भेजा लेख मुझे नहीं छापना चाहिए। लगभग हरएक भारतीय ऐसा मानता है कि इंग्लैंड गलत रास्तेपर था और उस विनाशकारी युद्धके लिए वही जिम्मेदार था। अब मैं बिना किसी कारणके एक पुराने विवादको फिरसे खड़ा नहीं करना चाहता।

जैसी कि आपकी इच्छा थी, मैंने आपके लेखकी एक प्रतिलिपि श्री नटेसनको मद्रास भेज दी है। मैंने आपका कार्ड 'यंग इंडिया' के प्रबन्धकको दे दिया है।

हृदयसे आपका,

कुमारी एडा रैसेनग्रेन
रो, लिडिंगो विलास्टेड

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२४६६) की फोटो-नकलसे।