४०७, पत्र: जवाहरलाल नेहरूको
साबरमती आश्रम
२३ अप्रैल, १९२६
हर हफ्ते तुम्हें लिखनेकी सोचता रहा हूँ, लेकिन अबतक नहीं लिख पाया। मगर यह हफ्तामें यों ही नहीं गुजर जाने दूँगा। पिताजी प्रतिसहयोगवादियों (रेस्पोंसिविस्ट्स) के साथ यहाँ आये थे; उन्हींसे तुम्हारे ताजा समाचार मिले। जो समझौता[१] हुआ है, उसे तो तुम देख ही चुके होगे।
हिन्दू और मुसलमान दिन-ब-दिन एक-दूसरेसे दूर ही होते जा रहे हैं। लेकिन इससे मुझे कोई चिन्ता नहीं होती। चाहे जिस कारणसे हो, मुझे लगता है कि यह अलगाव इसीलिए बढ़ रहा है कि आगे चलकर वे एक-दूसरेके और भी करीब आयें।
मुझे पूरी उम्मीद है कि कमलाको लाभ हो रहा होगा।
तुम्हारा बापू
ए बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स
४०८. गश्ती-पत्र
साबरमती आश्रम
२३ अप्रैल, १९२६
अब वह समय आ गया है जब दक्षिणी प्रान्तमें हिन्दी प्रचार कार्यालयको ट्रस्टका रूप देकर उसका काम ट्रस्टकी तरह ही चलाया जाये। पण्डित हरिहर शर्मासे सलाह-मशविरा करके मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि ट्रस्टियोंमें उस प्रान्तके कुछ हिन्दी-प्रेमी लोग भी होने चाहिए। मैं निम्नलिखित नाम सुझाता हूँ:
श्रीयुत कोण्डा वेंकटप्पैया गारु
श्रीयुत च॰ राजगोपालाचारी
सेठ जमनालाल बजाज
श्रीयुत हरिहर शर्मा
श्रीयुत हृषीकेश शर्मा
श्रीयुत सत्यनारायण
- ↑ देखिए परिशिष्ट २।