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४०४. भेंट: कृषि आयोगके सम्बन्धमें

अहमदाबाद
२२ अप्रैल, १९२६

परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदयसे मिलनेके लिए श्री गांधीको जो निमन्त्रण आया है, उसके सम्बन्धमें जब एक पत्र-प्रतिनिधिने उनसे भेंट की तो उन्होंने कहा:

इस सम्बन्धमें मुझे अधिक कुछ नहीं कहना है, क्योंकि मैंने शाही आयोगके कार्य-क्षेत्रका अध्ययन नहीं किया है और न मैंने इसमें कोई दिलचस्पी ही ली है। पक्का असहयोगी होनेके नाते मैं स्वभावतया सरकार द्वारा नियुक्त अनेक आयोगों और समितियोंके कार्यकलापोंमें कोई दिलचस्पी नहीं लेता। खेतीमें मुझे अवश्य दिलचस्पी है, यहाँतक कि खेतीके बारेमें बहुत कम जानते हुए भी अपने-आपको किसान कहनेमें मुझे खुशी है। और यदि परमश्रेष्ठ कार्यवाहक गवर्नर महोदय कृषि-सम्बन्धी अनौपचारिक चर्चाके लिए मुझे बुलाते हैं तो मैं अवश्य ही अपने विचार उनके सम्मुख रखूँगा।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २३-४-१९२६

४०५. पत्र: फ्रेड कैम्बेलको

साबरमती आश्रम
२३ अप्रैल, १९२६

मेरे प्यारे नौजवान दोस्त,

तुम्हारा पत्र मिला। बहुत चाहता हूँ कि तुम्हारी इच्छा पूरी कर सकूँ, लेकिन तुमने तो लगभग असम्भवकी माँग कर दी है। तुम्हें अंग्रेजीमें पत्र लिखनेके लिए मैं कोई भी सोलह वर्षीय किशोर नहीं ढूँढ सकता। इसका सीधा-सादा कारण यह है कि उसकी मातृभाषा तो कोई भारतीय भाषा ही होगी और स्पेनिशमें लिखनेवालेका तो कोई सवाल ही नहीं उठता। इसमें सन्देह नहीं कि अंग्रेजी रंगमें रंगे कुछ ऐसे भारतीय परिवार भी हैं, जहाँ शैशवकालसे ही अंग्रेजी सिखाई जाती है। लेकिन ऐसा कोई लड़का ढूँढ़नेके लिए तो मुझे तुम्हारा पत्र लेकर फेरी लगानी पड़ेगी और मुझे विश्वास है कि तुम न चाहोगे कि मैं ऐसा करूँ और न मुझसे ऐसा करनेकी अपेक्षा ही रखोगे। लेकिन अगर तुम किसी ऐसे व्यक्तिके साथ पत्र-व्यवहार करना चाहो,