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टिप्पणियाँ

  आँकड़ोंको इस दृष्टिसे ठीक कर लिया गया है कि हिसाबमें कोई आँकड़ा कहीं दो बार न जोड़ लिया जाये। उत्तर महाराष्ट्रके आँकड़ोंमें केवल जलगाँव और वर्षाके भण्डारोंके ही आँकड़े दिये गये हैं और मध्य महाराष्ट्रमें सिर्फ पूनाके भण्डारके आँकड़े दिये गये हैं।

उत्पादन और बिक्री दोनोंके लिहाजसे फरवरीके आँकड़े करीब-करीब जनवरीके आँकड़ोंके ही समान हैं। सिर्फ बम्बईके आँकड़ोंमें फर्क है। इस महीनेमें उसके बिक्रीके आँकड़े ४१, ४४८ रुपयेसे घटकर सिर्फ २६,०२९ रुपये रह गये हैं। परन्तु गत वर्षके फरवरी महीनेके आँकड़ोंकी तुलनामें, इस सालके आँकड़ोंमें, खासकर उत्पादनके आँकड़ोंमें, काफी वृद्धि हुई है। कुछ प्रमुख प्रान्तोंमें खादीके उत्पादनके आँकड़े नीचे दिये जा रहे हैं:[१]

बिक्रीके मामलेमें जहाँ पंजाब और उत्कलके आँकड़े लगभग पिछले वर्षके समान ही हैं, वहाँ बम्बईमें बिक्री घटी है। लेकिन पंजाब, बिहार और तमिलनाडके आँकड़े देखकर पता चलता है कि वहाँ बिक्री काफी बढ़ी है। इन प्रान्तोंके आँकड़े इस प्रकार हैं:[२]

मैं फिर अपनी यह आशा व्यक्त करता हूँ कि जिन केन्द्रोंने अभीतक अपनी रिपोर्ट नियमित रूपसे भेजना आरम्भ नहीं किया है, वे अब शीघ्र ही भेजना आरम्भ कर देंगे ताकि अखिल भारतीय चरखा संघ जहाँतक हो सके, सही आँकड़ोंको प्रकाशित कर सके।

दूसरे प्रान्तोंमें बिक्री आँकड़ोंकी बढ़ोतरीकी तुलनामें बम्बईके आँकड़ोंमें बराबर जो कमी आती जा रही है उसका ध्यानपूर्वक विचार करना चाहिए। एक समय था जब सारे हिन्दुस्तानमें तैयार हुई खादीकी बम्बई ही मैं सबसे ज्यादा खपत थी। अब भी इस लिहाजसे उसका स्थान काफी ऊँचा है और तमिलनाडके बाद दूसरा नम्बर उसीका है। गत वर्षके आँकड़ोंकी तुलनामें बम्बईके आँकड़े कुछ भी नहीं हैं। गत वर्षमें फरवरी महीनेके आँकड़े ४४,२२० रुपये थे, इस साल सिर्फ २६,०२९ रुपये हैं, जब कि तमिलनाडमें गत वर्ष फरवरी महीनेमें जहाँ सिर्फ ३४,८२५ रुपयेकी बिक्री हुई वहाँ इस वर्ष फरवरीमें ५३,५१२ रुपयेकी हुई है।

खादीकी व्यवस्थित बिक्री

खादीके प्रचार कार्यसे सब दिशाओंमें कार्यकर्त्ताओंकी कार्य करनेकी शक्तियोंका जिस प्रकार विकास हो रहा है, वह बड़ा ही आश्चर्यजनक है। केवल खादीका उत्पादन ही काफी नहीं है। खादीकी किस्म भी धीरे-धीरे सुधरनी चाहिए। उत्पादनपर होनेवाले खर्चको नियमित करना चाहिए और उत्पादन-वृद्धिके साथ-साथ उसकी बिक्री भी बढ़ती रहनी चाहिए। खादी प्रतिष्ठान उसका मार्ग दिखा रहा है। मैं पहले ही लिख[३] चुका हूँ कि बंगाल किस तरह अपने यहाँ तैयार की गई खादीको वहीं

  1. ये आँकड़े यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।
  2. ये आँकड़े यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।
  3. देखिए "टिप्पणियाँ", १-४-१९२६, उपशीर्षक "बंगालका अनुकरणीय उदाहरण"।