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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह बुराई गत युद्धके अत्यन्त घातक परिणामोंमें से है। इसने करोड़ोंकी जिन्दगी बर्बाद कर दी है, इसके कारण मनुष्यकी आत्मा और भी तेजीसे जड़ होती जा रही है। लेकिन, लेखक श्री गेविटने दिखाया है कि तेरह वर्ष पूर्व जब हेग-सम्मेलनमें इस विषयपर अन्तर्राष्ट्रीय समझौता हुआ था तबसे "इस समस्याका स्वरूप बहुत बदल गया है।" श्री गेविट सिर्फ यूरोपीय दृष्टिकोणसे ही कुछ कह सकते हैं। इसलिए वे कहते हैं:

यह बुराई अब विदेशोंकी, सुदूर पूर्वके देशोंकी समस्या नहीं रह गई है; अब यह भारत, चीन तथा दूसरे पूर्वी देशोंमें युगोंसे प्रचलित तरीकोंसे कच्ची और शोधी हुई अफीम खाने, पीने तथा चिलम में पीनेतक ही नहीं सीमित रह गई है।

अब तो इसका प्रयोग

अपने-आपको "सभ्य" कहनेवाले देशोंकी वैज्ञानिक ढंगसे चलाई जानेवाली बहुत ही कीमती साधनोंसे युक्त औषध-निर्माणशालाओंमें तैयार किये गये बहुत ही तेज और हानिकर सत्तके रूपमें होता है। पहले जहाँ अफीम सुदूर पूर्वसे पश्चिमी दुनियामें आती थी और यहाँके लोगोंको अफीम खानेकी आदत भी सुदूर पूर्वके संसर्गसे ही पड़ती थी, वहाँ अब यह धारा बिलकुल उलटकर बह रही है। और बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। जहाँ ये मादक पदार्थ तैयार होते हैं, वहाँके लिए और पड़ोसी देशोंके लिए भी ये उतने ही घातक सिद्ध हो रहे हैं और वहाँ भी बड़े खतरनाक पैमानेपर इनका प्रचार होता जा रहा है।...दरअसल तो इससे समस्त मानव-समाजके लिए खतरा पैदा हो गया है। इस शैतानके लिए तो कोई गोरा शिकार भी उतना ही उपयोगी है जितना कि काली या पीली जातिका कोई शिकार,...इसके साम्राज्यमें सूर्यास्त कभी होता ही नहीं।

इसके बाद लेखकने इस "बुराईकी जड़" पर विचार करते हुए बताया है कि इसकी जड़ तो दवा और वैज्ञानिक शोधोंके लिए इस तरहकी चीजोंका जितना उत्पादन सर्वथा उचित है उसके अनुपातमें उनका बहुत अधिक उत्पादन होना है।

...इस प्रकार दुनियाको जितने मादक पदार्थोंकी जरूरत है उसे अगर अधिकसे-अधिक बढ़ाकर आँका जाये तो भी आज उसकी अपेक्षा उनका दस गुना ज्यादा उत्पादन हो रहा है।

फिर लेखकने दिखाया है कि बड़े-बड़े देशोंमें से किसीने भी—— अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेनने भी इस समस्याको सुलझानेके लिए ठीकसे प्रयत्न नहीं किया है। लेखकने इन देशोंपर हेग-सम्मेलनमें हुए समझौतेके अनुच्छेद ९ के अन्तर्गत दिये गये वचनको तोड़नेका आरोप लगाया है। इस अनुच्छेदके अधीन उन्होंने "इन पदार्थोंका उत्पादन दवा और वैज्ञानिक शोधकी वास्तविक आवश्यकताओंके लिए अपेक्षित