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४००. मादक पदार्थ, शराब और शैतान

मादक पदार्थ और शराब, ये दोनों शैतानके दो हाथ हैं, जिनसे प्रहार करके वह अपने असहाय शिकारोंको जड़बुद्धि और मत्त बना देता है। और जेनेवामें आयोजित दो अफीम सम्मेलनोंकी जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, उसमें लिखे एक लेखके अनुसार अफीम तो, जो सभी मादक पदार्थोंमें प्रमुख है, सबसे बाजी मार ले गई। लेखकके ही शब्दों में:

तमाम कूचों और जवाबी कूचोंके दौरान, तलवारें खींचने और उन्हें पुनः म्यानमें रखनेके क्रममें तथा पराजयों और विख्यात विजयोंकी अफवाहोंके बीच अफीम तथा अन्य मादक पदार्थोंके व्यापारको नया बल, नई गति मिली है।

लेखकका कहना है कि विभिन्न राष्ट्रों द्वारा प्रचारित हैरान कर देनेवाली खबरोंसे पैदा हुई गड़बड़के बीच:

सम्बन्धित लोगोंमें से जो लोग ठीक-ठीक यह जानते थे कि वे क्या चाहते हैं और क्या नहीं, और जो लोग साफ-साफ देख रहे थे कि उन्हें क्या मिल रहा है तथा जो-कुछ मिल रहा था, उससे सन्तुष्ट भी थे, वे ऐसे लोग थे जो किसी-न-किसी प्रकारसे मादक पदार्थोंके व्यापारसे लाभ उठाते हैं।

लेखक आगे कहता है:

खासकर विश्वयुद्धके दौरान यह व्यापार लगभग बिना किसी रोक-टोकके चलता रहा है। पाँच सालके उस उथल-पुथलके कालमें, जहाँतक अन्तर्राष्ट्रीय दिलचस्पी या कार्यका सम्बन्ध था, मादक पदार्थोंके व्यापारके खिलाफ कोई प्रयत्न ही नहीं हुआ। उसे उतना ही अनिवार्य मान लिया गया जितना उस मूल पापको जिसके साथ कि ईसाई विश्वासके अनुसार मनुष्यका जन्म हुआ है। ...सच तो यह है कि खुद इस युद्धसे इस बुराईको बहुत बढ़ावा मिला। मानवीय दुःखोंसे राहत पाने और किसी हदतक युद्धकी भयंकर निराशा और घुटन, ऊब और एकरसताके बीच मानसिक शान्ति पानके लिए सेनामें मारफिया और कोकेनका इतना अधिक प्रयोग किया जाने लगा कि अन्तमें बहुत-से देशोंमें ऐसे नशाखोरोंका एक दल तैयार हो गया जिसकी नशाखोरीकी आदत छूट नहीं पाई और जिसकी यह आदत कमोवेश लाइलाज हो गई। ये लोग नशीले पदार्थ खाते रहे और दूसरोंके बीच भी इस कुटेवका प्रचार करते रहे। कारण, इस बुराईके साथ जो एक और चीज जुड़ी होती है, वह यह कि नशाखोर लोगोंमें दूसरोंको यह लत डालकर नशाखोरीका प्रचार करनेका एक विकृत उत्साह होता है।