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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  देनेकी यही खूबी है। यदि चन्दा वसूल करनेवाले और कातनेवाले सदस्य बड़े ध्यानपूर्वक अपना-अपना कार्य करें तो वे चन्देका मूल्य दुगुना कर सकते हैं, जबकि इसमें खर्च कुछ नहीं होगा। इसके विपरीत, अगर सूत लापरवाहीसे काता जायेगा या उसको जैसे-तैसे समेटकर बन्द कर दिया जायेगा तो उससे चरखा संघका बोझ बेकारमें बढ़ेगा और साथ ही उसका मतलब होगा राष्ट्रीय शक्ति और धनकी बर्बादी, जिससे बहुत आसानीसे बचा जा सकता था।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२-४-१९२६

३९९. क्या करें?

श्रीयुत शरत्चन्द्र बोसने श्रीयुत मणिलाल कोठारीकी मार्फत मुझे एक सन्देश भेजा है। उन्होंने मुझसे पूछा है कि जिन लोगोंको बिना मुकदमा चलाये, बिना इतना भी बताये कि उन्होंने क्या अपराध किया है, नजरबन्द रखा जा रहा है और जिनके साथ गम्भीर अपराधियोंकी तरह बर्ताव किया जा रहा है, उन लोगोंको स्वतन्त्र करानेके लिए क्या किया जाना चाहिए अथवा विशेषतः बंगालको क्या करना चाहिए। श्री शरत्चन्द्र बोस अपने इन देशवासियोंको स्वतन्त्र करानेके लिए उतने उत्सुक नहीं हैं, जितना कि वे उन नजरबन्द देशवासियोंके प्रति राष्ट्रकी सहानुभूतिका ठोस और प्रभावकारी प्रमाण चाहते हैं। उनका खयाल है और वह ठीक भी है कि जबतक हमारे ये वीर देशभक्त जेलोंमें बन्द हैं, तबतक यदि समस्त भारतका नहीं तो कमसे-कम बंगालका सम्मान दाँवपर लगा हुआ है। मैंने उन्हें जो निम्नलिखित उत्तर[१]}} भेजा है, इससे अच्छा उत्तर मेरे पास नहीं था। चूँकि श्री बोस चाहते हैं कि मैं इसे प्रकाशित कर दूँ, इसलिए मैं इसे प्रकाशित कर रहा हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२-४-१९२६
  1. देखिए "पत्र: शरतचन्द्र बोसको", ९-४-१९२६ और "विविध प्रश्न [—५]", १८-४-१९२६ का उपशीर्षक "तब हम क्या करें?"